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तथापि सहकारी कारण किसीके होसकता है ऐसा जानकर यहाँ कुछ वर्णन ज्ञानार्णवजी के अनुसार किया जाता है । तीन प्रकार के प्राणयाम है । (१) पूरक (२) कुंभक, (३) बेचक १
आत्मध्यान का उपाय
(१) ताल के छेद से या बारह अंगुल पर्यंत से पवनको बींच कर अपने शरीर में भरना सो पूरक है ।
(२) उस खींचे हुए पवन को नाभिके स्थानपर रोके, नाभि से अन्य जगह न चलने दे । जैसे घड़े को भरते हैं वैसे भरे सो कुम्भक है ।
(३) उसी पवन को अपने कोठेसे धीरे-२ बाहर निकाले सो रेचक है ।
अभ्यास करनेवालेको पवनको भीतर लेकर थामनेका फिर धीरे-२ बाहर तालु के द्वारा ही निकालने का अभ्यास करना चाहिए जो अधिक देर तक थाम सकेगा यह मनको अधिक रोक सकेगा । नाक से काम लेकर तालु से हो खींचना व तालु से हो बाहर निकालना चाहिए। इसका अभ्यास खुली हुई स्वच्छ हवामें करना उचित है, तब शरीरको बहुत लाभ होता है । जैसे नाभि के कमल में पवनको रोका जाये वैसा हृदयकमल के वहां भी रोका जा सकता है ।
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प्राणयाम में चार मंडल पहचानने चाहिए - (१) पृथ्वीमंडल, (२) जलमंडल, (३) पवन मंडल, (४) अग्निमंडल
(१) पीले रंगका चौकोर पृथ्वीमंडल है । जब नाक के छेद को पवनसे भरके आठअंगुल बाहर तक पवन मंद-मंद निकलता रहे तब पृथ्त्रोमंडलको पहचानना चाहिए। यह पवन कुछ ऊष्ण होती है ।