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मात्मध्यान का उपाय
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इस पदस्थ घ्यानके अभ्याससे भी पित्त अन्य विचारोंसे रुक कर धर्म ध्यान में तल्लीन होता है । इसका अभ्यास करना परम हितकारी है । और भी बहुत से मंत्र हैं जिनका वर्णन श्री ज्ञानाजो मासुम हो सकता है । वजो काहो --
अमर पर को अर्थ रूप ले ध्यान में। जे ध्यायें हम मंत्र रूप इफतानमें ।। ध्यान पदस्थ जु माम कहो मुनिराजने ।
यामें हों लीन लहें निज कामने ॥
(३) रूपस्थ ध्यान अरहंत भगवानके स्वरूप में तन्मय होकर उनका ध्यान.करना सो स्वरूपस्थ ध्यान है। किसी एक तीर्थ करको-ऋषभ, पार्श्व, नैमि, या महावीर को विचारे । उनको नीचे प्रमाण ध्यावे।
(2) समवशरण के श्री मंडप में १२ सभायें हैं, उनमें चाय प्रकार के देव, देवियां, मुनि आयिका, मानव व पश सर्व बैठे हैं, तीन कटनी पर गंधकूटी है उसमें अंतरीक्ष चार अंगुल ऊंचे श्री अहंत प्रभु पद्मासन विराजमान है ।
(२) जिसका परमौदारिक शरीर कोटि सूर्यको ज्योति को मन्द करनेवाला है, जिसमें मांस आदि सात धातुएं नहीं हैं। परम शुद्ध रत्नवत् चमक रहा है।
(३) प्रभु परम शांत, स्वरूप मग्न विराजमान हैं, जिनके सर्व शरीर में वीतरागता झलक रही है।
(४) श्री अरहंत भगवानके क्षुधा, तुषा, रोग, शोक, चिंता रागद्वेष, जन्म, मरण आदि अठारह दोष नहीं हैं। ...