Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 344
________________ मात्मासान का जपाय क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म । फिर मुखमें स्थिति आठ पत्रोंके सफेद कमल पर पीले रंगोंके आठ अक्षरोंको लिखे व भ्रमण करता हुआ विचारे। वे हैं-य र ल व श ष स है। इस तरह तीनों कमलोंको देखता रहे व मन में अक्षा रक्खे कि ये सर्व श्रतज्ञानके मूल अक्षर हैं, मैं जिनवाणी का ही ध्यान कर रहा हूँ। (२) मन्त्रराज हैं यह साक्षात् परमात्मा को व चौबीस तीर्थंकरों को याद दिलाने वाला है। पहले इसके दोनों भोहों के बीच चमकता हमा जमाकर देखें फिर वह मुख में प्रवेश करके अमृतको झरता हुआ, फिर नेत्रों की पलकों को छूता हुमा, मस्तकके केशों पर चमकता हुआ फिर चन्द्रमा व सूर्य के विमानों को छूता हुआ तथा ऊपर स्वर्गादिको लांघ कर आता है और मोक्ष स्थान में पहुंच जाता है। इस तरह भ्रमण करता हुआ ध्यावे । (३) प्रणब मन्त्र ॐ या ओम् हृदय में सफेद रंगका कमल विचार करे, उसके मध्य में * को चंद्रमाके समान चमकता हुआ ध्यावे । इस कमल के आठ पत्रों पर तोन पर १६ स्वर या पांच पर २५ व्यंजन लिखकर चमकता हुमा ध्यावे । इस तरह ३३ अक्षरसे वेष्टित ॐ का ध्यान करे। इस चमकते हुए ॐ को नोचेके स्थानों पर भी विराजमान करके ध्यान करे । श्रद्धान रखें कि यह मंत्र अरहंतसिद्ध आदि पांच परमेष्ठीका वाचक मंत्र है, ध्यान करता हुआ मध्यमें इनके गुणों का भी चितवन कर सकता है।

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