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आत्मध्यान का उपाय
दश स्थान - ( १ ) मस्तक, ( २ ) ललाट या माथा, (३) कान, (४) नेत्र, (५) नाककी सोक, (६) दोनों भौहोंका मध्य भाग, (७) मुख, (८) तालु, (६) हृदय, (१०) नाभि ।
(४) णमोकार मन्त्र
हृदयस्थान में चंद्रमा समान चमकता हुआ आठ पत्रों का कमल विचारे । उसके मध्य के कणिका के स्थान में "णमो अरहंताणं" को चमकता हुआ ध्यावे। फिर चार दिशाओंके चार पत्रों पर पूर्व पर णमो सिद्धाणं" पश्चिम पर " णमो आइरियाणं" उत्तर की तरफ "णमो उवज्झायाणं" और दक्षिण की तरफ " णमो लोए सव्वसाहुगं" विराजमान करके क्रमसे घ्यावे । फिर चार कोनोंके पत्तों पर क्रमसे "सम्यग्दर्शनाय नमः" " सम्यग्नाः नाय नमः " " सम्यक्चारित्राय नमः” “सम्यग्तपसे नमः” इन वार पदोंको ध्यावे । नौ पत्तों को क्रमवार बदलता हुआ ध्यान करता रहे। बीच- २ में स्वरूप चिन्तवन करता रहे।
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(५) पंच परमेष्ठी ध्यान
अ, सि, आउ, सा, ये पांच अक्षर पांच परमेष्ठियोंके प्रथम अक्षर हैं, इनको चंद्रमा के समान चमकता हुआ पांच स्थानों पर पाँच कमलों के मध्य में स्थित घ्यावे |
(१) नाभिकमल के मध्य में अ । ( २ ) मस्तक के कमल में सि । (३) कण्ठ के कमल पर आ । (४) हृदय के कमल पर उ । (५) मुख के कमल पर सा ।