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(५) जिनके ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से अनंतज्ञान प्रगट हो गया है, जिससे सर्वलोक अलोकको एक समय में जान रहे हैं। दर्शनावरणीय कर्मके क्षय से अनंतदर्शन प्रगट हो गया है जिससे लोकालोक को एक समय में देख रहे हैं। मोहनीय कर्मके क्षयसे क्षायिक सम्यग्दर्शन व यथाख्यात चारित्र या वीतरागत्व प्रगट हो रहा है । अन्तरायकर्म के क्षयसे अनंतवीयं अनंतदान, अनंतलाभ, धर्मग, अहो हैं अर्थात् नव केवल लब्धियोंसे विभूषित हैं । अनंतलाभ शक्तिके प्रगट होने से प्रभुके परमोदारिक शरोरको पुष्ट करने वालो आहारक वर्गणाएँ स्वयं मशरीर में मिलती रहती है जिससे साधारण मानवों की तरह उनको प्रास लेकर भोजन करने की जरूरत नहीं पड़ती है ।
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आरमध्यान का उपाय
(६) जिस प्रभु के आठ प्रतिहार्य शोभायमान हैं- ( १ ) अति मनोहर रत्नमय सिंहासन पर अन्तरीक्ष विराजमान हैं, (२) करोड़ों चंद्रमा को ज्योतिको मंद करने वाला उनके शरीर की प्रभा का मण्डल उनके चारों तरफ प्रकाशमान हो रहा है, (३) तोन चंद्रमा के समान तीन छत्र ऊपर शोभित होते हुए प्रभु तीन लोक के स्वामी हैं, ऐसा शलका रहे हैं । ( ४ ) हंस के समान अति श्वेत चमरों को दोनों तरफ देवगण द्वार रहे हैं, (५) देवों के द्वारा कल्पवृक्षों के मनोहर पुष्पों को वर्षा हो रही है, (६) परम रमणीक अशोक वृक्ष शोभायमान है उसके नीचे प्रभु का सिंहासन है, (७) दंदुभि बाजों की परम मिष्ट व गंभीर वहां रही है, (८) भगवान की दिव्य ध्वनि मेघ गर्जना के समान हो रहा है जिसको सर्व हो देव, मनुष्य, पशु, अपनो २ भाषा में समझ रहे हैं।