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पृथ्वी धारणा। में एकांत में बैठ कर विचारता है कि यह संमार समुद्र के समान जीयों से भरा है। समुद्र जल से भरा है। उममें १००० पनों का कमल है। बीच में सुमेरु पर्वन समान मर है। उसके कपर एक चौकी विराजमान है । उस पर बैठा और विचारता हूं कि सब सांसारिक झगड़ों से बच कर इस शरीर पुदुलन में शुद्ध होने का उपाय करू ताकि भव-भ्रमण से छूट जा।
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