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तस्वभावना
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पढ़ते व सुनते हुए भी तत्व का निश्चय नहीं होता है तब फिर तेरे आश्रय बिना पुरुष में भेद विज्ञान कैसे होगा? जो तेरी सेवा नहीं करते उनका जन्म निष्फल है । तू ही पवित्रज्ञान जल को रखने बालो नदो स्वरूप है, तू तोन लोक के जीवोंको शुद्ध करने का कारण है और तूही निश्चय आत्मतत्वके श्रद्धान करनेवालों को आत्मानन्दरूपी समुद्र के बढ़ाने क लिए चन्द्रमाके समान है ।
मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द जो अगतारण मोक्षलक्ष्मिवतो सदशनं वायका, अनुपम जिनवर वाणि पाठ करते सुनते रुधिधारक । ते सज्जन दुष्प्राप्य आज जगमें क्रोधाविमल पूर जो। कहना क्या उनका स्वमुक्तिहेतू साधे परमज्ञान जो ॥१०॥
उत्थानिका-आगे कहते हैं कि जो इस संसार समद्र से तर गए हैं वे अरहंत इसी प्रकार की शिक्षा देते हैं कि अन्य जीव भी तिरेंये स्तयां जन्मसिधोरसुखमितितोलया तारयित्वा । नित्यं निर्धाणलक्ष्मी बधसमितिमता निर्मलामपंयन्ते ।। स्वाधोनास्तेऽपि यत्तस्यपगततमोजानसम्यक्त्वपूर्वाः । पोष्यन्से नान्यशिक्षा मम परममुभौ बिद्यते नान चिनम् 1१०६
अन्वयार्थ-(ये) जो असुखमिलिततेः जन्मसिधो:) दुःखों के समूहसे भरे हुए संसार समुद्रसे(लीलया तारयित्वा)लोला मात्र में पार उतारकर (स्तूयाँ) प्रशंसनीय (नित्यं)अविनामी (बुधसमितिमतां) बुद्धिमानों से माननीय (निर्मलाम्) निर्मल(निर्वाणलक्ष्मी) मोस लक्ष्मी को(अपंयन्ते) प्रदान करते हैं (तेपि) के