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हैं, ऐसे तीर्थंकर भी आयुकमंके समाप्त होने पर इस शरीर को छोड़कर मोक्षको चले जाते हैं तो फिर अन्य अल्पायुधारी मानवों के जीव का क्या भरोसा ?
तत्त्वभावना
मूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द
जो यम हन डाले, बेय इन्द्राविकों को । वह बलशालिनको दीर्घ वम धारिकों को ॥ सो मानव वर्ग जो धरें आयु अल्पा । हनता क्षणभर में नाहि श्रम कोय करूपा ॥११७॥ उस्थानिका- आगे कहते हैं कि इस जगतमें कोई वस्तु सुखदाई नहीं है-
स्वजनसंगतिरेव बितापिनो भवति यौवनका जरसा रसा । बिपदवैति सखीव च संपदम् किमति शर्मविधायिन दृश्यते ॥११.१
अन्वयार्थ - ( स्वजन संगतिः) अपने बंधुजनों की संगति (एव) ही (वितापिनी) उसके वियोग में दुःख देने वाली हो जाती हैं ( योनिका ) युवानी ( जरसा रसा) बुढ़ापे के साथ हैं ( विपत् ) कापत्ति (सखी इव) सखी के समान ( संपदम् ) सम्पत्ति के पास (अति) जाती है । ( शमंविधायि) सुख देने वाली ( किमपि ) कोई भी वस्तु ( न दृश्यते) नहीं दिखलाई पड़ती है ।
भावार्थ - इस जगत में जिस-जिस पदार्थ का संयोग है वह वियोग के साथ है । आज जिन स्त्री पुत्र मित्रों के साथ में कुछ साता मालूम होती है यदि उनका वियोग हो जावे या वे अपने अनुकूल वर्तन न करें तो ये ही पदार्थ दुखदाई भासते हैं व उनके निमित्तसे नित्य संताप रहता है । जिस युवानी के मद में चूर होकर हम शरीर के बलका व रूपका अहंकार करते हैं वह जवानी