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इस काल में ध्यान करने वालेको पद्मासन, पल्यंकासन तथा कायोत्सर्ग इन तीन आसनों को काम में लेना चाहिए तथा किसी एक आसन का खूब अभ्यास कर लेना चाहिए। आसन ऐसा जमावे किदेखने वाले को चित्राम सा मालूम हो ।
पंडित जयचन्दजी कहते हैं
आत्मध्यान का उपाय
आसन बिते ध्यान में, मन लागे इकतान । तातें आसन योग, मुनि कर धारें ध्यान ॥ ध्यान समायिक के साथ करना उचित है ।
सामायिक को विधि
यह विधि सामान्य व सुगम लिखो जाती है जिसको हर एक समझकर अभ्यास में ला सकती है ।
पहले ही मनको और कामों में हटाकर स्वस्थ करले, बचन के बोलने की व कावसे अन्य काम करने को इच्छा को रोकले व शरीर को अशुचि व गंदगी साफ करले । पवित्र वस्त्र जितने कम पहने उतना ठोक है। जिसमें शरदी गर्भा की बाधा न हो ऐसा होकर मन वचन काय शुद्धकर ठीक समय पर अर्थात् प्रातः काल, मध्यान्ह या सायंकाल एकान्त निराकुल स्थान में जाकर किसी बसनको बिछाकर या भूमिमें ही पूर्व या उत्तरकी ओर मुख करके खड़ा हो क्योंकि अभ्यासी के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होकर ध्यान करना शास्त्र में कहा है । यद्यपि अन्य दिशा में भी ध्यान का सर्वथा निषेध नहीं है । जैसा - ज्ञानार्णव के इन श्लोकों से सिद्ध होता है --
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पूर्वाशाभिमुखः साक्षादुतराभिमुखोपि वा । प्रसन्नवदनो व्याता ध्यानकाले प्रशस्यते ॥