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तत्त्वभावना
उत्यानिका-आगे कहते हैं कि इन्द्रियों के विषयों में जो लोन हो जाते हैं वे नाश को प्राप्त होते हैं।
खचरनागसो दमयन्ति ये कथममी विषया न परं नरम् । समदन्तिमदं क्लयन्ति ये न हरिण हरयो रहयंति ते ।११६
अन्वयार्थ (ये विषयाः) ये इन्द्रियों के विषय जब (खचर नागसदः) विद्याधर व नागकुमारों के समूह को (दमयन्ति) वश कर लेते हैं तब (अमी) ये (परं नरम्) दूसरे मानव को (कयं न) क्यों नहीं वश कर सकेंगे? (ये हरयः) जो सिंह (समददन्तिमदं) मदवाले हाथियों के मद को (दलयन्ति) चूर्ण कर डालते हैं (ते) वे (हिरणं) हिरण को (न रहयन्ति) छोड़ने वाले नहीं हैं। ___ मावार्थ-पाचौ इन्द्रियों के विषय बड़े प्रबल है। ये बड़े-२ विद्याधरों को, नागेन्द्रों को, देवों को, चक्रवर्ती, नारायणों को अपने वश में करके दीन हीन कर डालते हैं और उनको दुर्गतिमें पहुंचा देते हैं तब साधारण मानव को अपने आधीन कर डालें इसमें तो कोई अन्यपने की बात ही नहीं है । भला जो सिंह मव बाले हाथी को चूर कर सकते हैं उनके लिए हिरणों को क्या गिनती ? प्रयोजन यह है कि इन दुष्ट विषयों से सदा अपने को बचाना चाहिए । ये आत्महितके मार्ग में प्राणीको गिराने वाले हैं
और संसार के भयानक जंगल में पटक देने वाले हैं। वहाँ यह प्राणी भटक भटक कर घोर कष्ट उठाता है और ऐसा अन्धा हो जाता है कि फिर इसको सुमार्ग दिखता ही नहीं। स्वामी अमित गति सुभाषितरत्नसंदोह में कहते हैं--
आदित्यचन्द्रहरिशंकरवासवाघाः । शक्ता न जेतुमतिदुःखकराणि यानि ।।