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तस्वभावना
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बसे होने वाला बन्ध बिलकूल रुक जाता है। कषायों को जितना जितना घटाया जायगा उतना - २ कषाय सम्बन्धी कर्मबंध रुक जायगा। जिस वीतरागी साधु के कषायों का प्रकाश बिलकुल नहीं होता वहाँ कषाय सम्बन्धी सर्व कर्म का बन्ध रुक जाता हैन, वचन, काय कर्मों के आने में कारण है । इनके पूर्णपने रुकनेसे कर्मों का आना बिलकुल रुक जाता है ।
मुख्य
निर्जरा तरब- इसमें यह बताया गया है कि कर्मों का अपने समय पर फल देकर झड़ने मात्र से काम सिद्ध नहीं होता है । कर्मों का बिना फल दिये ही झड़ जाना आवश्यक है | इसका उपाय सच्चा आत्मा व सच्चा आरमध्यान है ।
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मोक्षतत्त्व -- जब यह जीव सर्व कर्मों से छूट जाता है तब परम पवित्र परमात्मा हो जाता है फिर सदा के लिए बंधरहित हो जाता है। इस तत्व को जो पालते हैं उनको सिद्ध कहते हैं । इस तरह व्यवहारनय से इन सात तत्वों का स्वरूप है । निश्चप नय से इनमें जीव और कर्मपुद्गल इन दो ही का सम्बन्ध है । कर्मपुद्गल मेरा स्वभाव नहीं है ऐसा जानकर उसे छोड़ निज शुद्ध आत्मा ही मैं हूं ऐसा श्रद्धान करना निश्चयसे इन तत्वों का ज्ञान है । व्यवहारनय तो परद्रव्यों के आश्रय लेकर पदार्थ का विचार करता है । निश्चयनय मात्र एक ही द्रव्य के आश्रय उसका विचार करता है । व्यवहारनय से सात तत्वों का श्रद्धान व इनहीं का यथार्थ ज्ञान सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान है । निश्चयनयसे शुद्ध बारमाही में हूं यह श्रद्धान तथा ऐसा ही ज्ञान सम्यग्जान है ।
व्यवहारयसे मुनिके या धावकके व्रतों को पालना सम्यग्