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जब चित्त हटने लगे तब नीचे लिखे मंत्रों में से किसी मंत्र को जपने लगें । बीच बीच में मंत्र के अर्थ को भी विचारने लगें फिर अपने मनको उसी आत्मरूपी जल में डबी देवें । इस तरह बाब बार अभ्यास करनेसे हमारा ध्यान और सब बातोंसे हटकर एक आत्मा पर ही रुक जायगा, बहुत कालके अभ्यास में विरक्तता बढ़ती जायगी। जैसा कहा है
तत्वभावना
सोहमिश्यात्तसंस्कारः तस्मिन् भावनया पुनः । लव बृढसंस्काराल्लभतेह्यात्मनि स्थितिम् ॥
भावार्थ- मैं शुद्धात्मा हूं इस तरह बार बार विचार करता हुआ जब ऐसा संस्कार होजाता है तब उसीमें बारबार भावना करने से और भी दृढ़ हो जाता है फिर यह अभ्यासी निश्चय से आत्मामें थिरता प्राप्त कर लेता है ।
द्रव्य संग्रह में नोचे लिखे खास मंत्र जपके लिए बताये हैंपणतोस सोल छप्पण चहु युगमेगं च जवह भाएह । परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरुवएसेम ॥
भावार्थ - श्री अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पांच परमपदके धारी पंचपरमेष्ठीको बताने वाले नीचे लिखे मंत्रोंको व गुरुके उपदेश से और भी मंत्रों को जपे तथा घ्यावे ।
(१) णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सश्व साहूणं । ३५ अक्षरी मंत्र । (२) अर्हत्सिद्धचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्यो नमः । १६ अक्षरी मंत्र ।
(३) अच्छंत सिद्ध-६ अक्षरी मंत्र ।