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तत्त्वभावना
भावार्थ—यहां पर यह बताया गया है कि संसारमें हरएक अवस्था नाशवंत है । जिन महापुरुषोंकी इंद्रियों की रचना ऐसी सुन्दर होती है जो तीन लोकके प्राणियों के मनको हरण कर सके व जिनका जीवन अनेक सांसारिक सुखोंसे पूर्ण होता है व जिनके पास चक्रवर्तीको-सी सम्पदा होती है ऐसे-२ प्राणी इतनी जल्दी नष्ट हो जाते हैं जैसे कमल के पत्ते पर पड़ी हुई पानीमी लंद गिर जाती है। संसार के सर्व पदार्थों को चंचल समझ कर किसी से भी मोह करना उचित नहीं है। अमितगति महाराज सुभाषितरत्नसंदोह में कहते हैंवर्य येभ्यो जाता मतिमुपगतास्त्र सकलाः। समं यैः संपता ननु विरसता तेपि गमिताः॥ इदानीमस्माकं मरणपरिपाटीकमकृता । न पश्यन्तोष्येवं विषयविरति यान्ति कृपणाः ॥३३७॥ भावार्थ-जिनसे हम पैदा हुए थे वे सब तो मर चुके, व जिनके साथ हम बढ़े थे वे भी वियोग को प्राप्त हो गए, अब हमारा मरण होने वाला है। जो दोन हैं वे ऐसा देखते हुए भी इंद्रियों के विषयों से विरक्त नहीं होते हैं।
वास्तव में चतुर पुरुषको संसार की अनित्यता को ध्यान में लेकर स्वहित में प्रयत्न करना उचित है।
मूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द जगमनहरसम्पत् अक्ष यौवन स्वजीवन, चंचल हैं सारे, जिम कमलपत्र जलकण। इम सकल पवारण तीन भके अपिर हैं, शानो शाता हो आत्महित वीच बृढ़ हैं ।।१०६॥