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तत्त्वभावना
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-------- भावार्य--अविनाशी मोक्षपदकी प्राप्तिके लिए यतिका धर्म यह है कि बह चारित्रवाले, दशलाक्षणी धर्मके अभ्याससे संयमी रहे, तपस्वी हो २८ मूलगुण व उत्तम गुणपाले, मिथ्यात्व मोह व मदको त्यागे, समभाव रक्खे इंद्रिय दमन करे, ध्यान करे, प्रमादी न हो, वैराग्य धारण करे, सिद्धान्तशास्त्र का ज्ञान व दाता रहे, निर्मल रत्नत्रय पाले, अन्त में समाधि भावसे मरण करे ! वास्तव में सच्चे ध्यानी साधु ही मोक्षके पात्र होते हैं
मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द जिसने अक्षकषाय शव जीते, व्यवहार लौकिक तजा। बाह्याभ्यंतरसंग सर्व छोड़ा, मनको स्ववशमें भजा ॥ मवतन भोग विराग अंध विषयान सा किया। ते सज्जन सब कर्ममेल हरके शिवधाम वासा लिया ॥३६॥
उत्थानिका-आगे कहते हैं कि शरीर और आत्मा का भेद ज्ञान ही लाभकारी हैं
संघतस्य न साधनं न गरयो नो लोकपूजा परा। नो योग्यस्तुणकाष्ठशलधरणोपृष्ठः कुतः संस्तरः॥ कर्तात्मैव विबुध्यतायममलस्तस्यात्मतत्त्वस्थिरो । जानानी जलदुग्धयोरिव भिवां देहात्मनोः सर्वदा ॥३७॥
अन्वयार्थ-(तस्य) उस आत्मध्यान या आत्मशुद्धि का (साधनं) उपाय (न संघः)न तो मुनि आयिका श्रावक श्राविका
का संघ है (म गुरवः) न गुरु आचार्य हैं (नो परा लोकपूजा) न ___ लोकों से बड़ी पूजा पाना है (नो योग्यः तृणकाष्ठ शैलधरणीपृष्ठः