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तस्वभावना
आकाशका फूल कभी होता नहीं, फूल तो किसो वृक्ष की शाखा में होता है। यदि कोई बड़ा भारी दाता है और उससे कोई याचक यह कहे कि तू मुझे आकाशका फूल दे तो वह कभी उसे हे नहीं सकता क्योंकि सपके पास आकर फूल है ही नहीं। तात्पर्य कहनेका यह है कि शरीर जड़ है इसकी पूजासै जड़-मूखं हो रहोगे। कभी सम्पग्ज्ञानी व केवलशानी नहीं हो सकते किंतु जब निज आत्मा का ध्यान करोगे तो अवश्य सम्यग्ज्ञान व सुख शांति की प्राप्ति होगी। इष्टोपदेश में श्री पूज्यपादस्वामीने भी ऐसा ही कहा है--
अशानोपास्तिरशानं ज्ञानं ज्ञानिसमाश्रयः।
बवाति यस्तु यस्याति सुप्रसिद्धमिदं पयः॥२३॥ मानार्थ अज्ञानकी सेवासे अज्ञान होगा और शानी आत्मा को सेवासे ज्ञान होगा। यह प्रसिद्ध है कि जिसके पास जो है वही दूसरे को उसी में से कुछ दे सकता है। एकत्वाशीति में पद्मनंदि मुनि कहते हैं
अजमेक परं शांतं सर्वोपाधिषिजितम् । मात्मानमात्मना शाला तिष्ठेवात्मनि यःस्विरः ॥१६ स एवामतमार्गस्थः स एवामृतमश्नुते ।
स एवाहन जगम्नायः स एव प्रभुरीश्वरः ॥१६॥ भावार्थ-जो कोई स्थिर होकर आत्माके द्वारा अजन्मा, एक रूप, उत्कृष्ट, योतराग, सर्वरागादि उपाधिरहित अपने आत्माको