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तत्त्वभावना
बोधयोगाका सम्बन बाहरी
है कि घर तो बच जाय व रहने वालेका नाशहो जाय यह काम करना अच्छा है ? वास्तवमें घरसे घरवाले का मूल्य बहुत ज्यादा है । घर तो फिर भी बन सकता है 1 र घानामा पर गया तो फिर जोना कठिन है। इसलिए शरीर के मोह में न पड़कर आत्महित हो करना श्रेष्ठ है 1 एकत्वाशोति में श्री पद्मनंदि मुनि कहते हैंबहिविषयसम्बन्धः सर्वः सर्वस्य सर्वदा ।
अतस्तद् भिन्नचैतन्यबोधयोगौतु दुर्लभौ ॥१॥ भावार्थ-बाहरी शरीर आदि पदार्थों का सम्बन्ध तो सर्व जीवोंके सदा ही होता रहता है वह तो सुलभ है। परन्तु बाहरी पदार्थोंसे भिन्न यात्माका ज्ञान व आत्मा का ध्यान कठिनता से मिलते हैं इसलिए इनका अभ्यास हितकारी है।
मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द जो धन आदि पवार्थ भाव रागी, या वेह को हित करें। सो संसार समुद्र मांहि पटके निजको सदा दुख करें। हितकर्ता तप आदि भाव जियको सो देहको दुख करें। मिर्मलधो इम जान देह हितकर परिणाम बर्छन करें॥४४॥
उत्थानिका-आगे कहते हैं कि मात्मा की आराधना से ही आत्मा के पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति होती है :
शालिनी छन्द आत्मा ज्ञानी परमममलं ज्ञानमासेव्यमानः । कायोज्ञानी वितरति पुन?रमज्ञानमेव ।। सर्ववेदं जगति विवितं दीयते विद्यमान । कश्चित्त्यामो न हि खकुसुमं चापि कस्यापि वसे ॥४५॥