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तश्वमावना
इस तरह जो दृढ़ता से आत्मज्ञानी हैं वे ही आत्मध्यान करने को समर्थ हो सकते हैं
___ मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द मैं हूं शूर सुवुद्धि चतुर महा धमवान सबसे बड़ा। मैं गुणवान समर्थ मान्य जगमें मैं लोक में हूं बड़ा। हे आत्मन् ! यह कल्पना दुःखकरीतू सर्वथा चूर कर। नित निज पातमतत्व ध्याय निर्मल श्रीमोक्ष आवेस्वकर ॥६॥
उस्थामिका-आगे कहते हैं कि क्रोधादि कषायोंके त्याग बिना मोक्ष होना कठिन है।
मालिनी वृत्तम् धृतविविधकषायग्रंपलिंगव्यवस्थम् । यदि यतिनिकुबम्बं जायते कमरिक्तम् ।। भवति ननु तवानी सिंहपोसाविवार्य
शशकानसकर हस्तियर्थ प्रविष्टम् ।।६३॥ अन्वयार्थ (यदि)यदि(तविविधकषायग्रंथलिंगव्यवस्थम्) नाना प्रकार क्रोध मानादि कषायोंको, परिग्रह को तथा भेषको व्यवस्था को पकड़कर रहने वाले (यतिनिकुरुम्ब) साधुओं का
समूह (कमरिक्तम् ) कर्मों से खाली (जायते) हो जावे अर्थात ANA मुक्त हो जावे तो (नन में ऐसा मानता हूँ कि(तदानीं) तब तो
(सिंहपोताविदार्य शशकनलकरंध्र)सिंह के बच्चे के द्वारा विदापारण करने को अशक्य खरगोश की हड्डी के महीन छेद मे (हस्तियूथं) हाथियों का समुदाय (प्रविष्टम् भवति) प्रवेश कर जावे ।
भावार्थ-यहाँ पर आचार्यने दिखलाया है कि जो यथाजात मुनि भेष,परिग्रह रहितपना व कषायों की उपसमताको ध्यान में न