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तस्वभावना
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www. मामा सहकारमान लान (निरवरैः) बड़े-२ मनुष्योंके द्वारा (आव) एकत्र करके (दु:प्राप्यः अपि)कठिनतासे प्राप्त करने योग्य ऐसाभी (यः परिग्रहः) जो परिग्रह (प्रागामागे) प्राणोंने वियोग हों पर तग इव) सिनके के समान (स्यज्यते) छोड़ देना पड़ता है (पुनः) परन्तु (त्व) तू (दुःखजनकंत) दुःखोंको उत्पन्न करने वाले उस परिग्रह को (मादी एव) पहले ही (दूरतः) दूरसे (त्रिधा) मन, वचन, काय तीनोंसे (विमुंच) छोड़ दे (चेतः मस्करिमोदकस्यतिकर) तु अपने चित्तको भिष्टामें पड़े हुए लाइको उठाकर फिर फेंककर (हास्यास्पद) मा कथा:) हंसी का स्थान मत बम ।
भावार्थ- यहां पर आघायं कहते हैं कि राज्य लक्ष्मी आदि परिग्रह बड़ी-२ मिहनतोंसे एकत्रित किये जाते हैं। ऐसीभी वस्तुएँ संग्रह की जाती हैं जो हरएकको मिलना दुर्लभ हैं। परंतु करोड़ों की संपत्ति क्यों न हो व कैसी भी कठिनता से क्यों न एकत्र की गई हो वह सब परिग्रह बिलकुल छोड़ देना पड़ता है जब मरण का समय आ जाता है। जैसे हाथ से तिनका गिर पड़े ऐसे ही सब छूट जाता है । जब परिग्रह बात्मा के साथ जाने वाला नहीं है तब ज्ञानवान प्राणीको उचित है कि पहले वह परिग्रह स्वयं छूटे, ज्ञानीको स्वयं मोह त्यागकर छोड़ देना चाहिए और यदि परिग्रह नहीं हो तो नया परिग्रह एकत्र करने की लालसा न करनी चाहिए। परिग्रहको ग्रहण कर फिर छोइना,वास्तव में हँसी का स्थान है । जैसे एक फकीरको किसीने बहुतसे लड्डू दिये उसमें से एक लड्डू विष्टा में गिर पड़ा, उस लोभी ने उसे उठा लिया तब किसी ने कहा कि ऐसे अशुद्ध लड्डू को तुमने क्यों उठाया ? तब यह कहने लगा कि मैंने उक्रा लिया है परन्तु घर