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तारणतरण
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साथमें है जो कुदेवोंके भक्त है वे कुदेवोंकी पूजा भक्ति कर रहे हैं उस समय यह सोचे कि मैं यदि
श्रावकाचार नहीं करूंगा तो मैं निर्लज्ज कहलाऊँगा । इसलिये लाजके भयसे करने लग जावे, ऐसा सम्यक्ती नहीं करेगा। यदि कोई कुगुरु ऐसी आशा दिलावे कि जो कोई मेरी भक्ति करेगा वह शीघ्र बहु धन कमावेगा तौभी वह सम्यक्ती धनकी आशासे ऐसी मूढता नहीं करेगा। किसी मित्र के साथ बहुत स्नेह वह देवका भक्त है वह जब देवोंकी भक्ति कर रहा है तब यह सोचे कि याद में भी भक्ति न करूंगा तो मित्रका स्नेह कम होजायगा, इस स्नेहके वश श्रद्धा न होते हुए भी कुदेषकी . पूजा करने लग जावे, सम्यक्ती ऐसा नहीं करेगा।
स्वर्गादि व पुत्रादिके लोभसे भी सम्यक्ती कुगुरु आदिकी भक्ति नहीं करेगा। सम्यग्दृष्टी जौहरी है, वह रत्न परीक्षक है। जहां रत्न सच्चा होता है वहीं वह सच्चा रतन मानता है व वहीं वह उसकी वैसी प्रतिष्ठा करता है।
लौकिक व्यवहार धार्मिक व्यवहारसे भिन्न है। धार्मिक व्यवहारमें सम्यक्ती धर्म परतिसे व्यवहार करेगा। परंतु लौकिक व्यवहारमें लौकिक रीतिसे व्यवहार करेगा। लौकिक व्यवहारको लौकिक मानते हुए व लोकमें प्रचलित लौकिक विनय करते हुए सम्यक्तीको श्रद्धानमें कोई दोष नहीं आसक्ता। जैसे राजा, हाकिम, बड़े नगरसेठ आदिके पास जाते हुए व उनके अपने यहां आते हुए वह यथायोग्य विनय प्रणाम करेगा। यदि लौकिक विनय न की जाय तो लोक व्यवहार बिगड कायगा । लौकिक विनय करनेसे धार्मिक श्रद्धामें बाधा नहीं आती है। हनूमान, सुग्रीव, आदि बड़े पुरुषोंने राजाओंके दरबारमें जाते हुए यथायोग्य विनय किया था। व्यवहारमें कटुकता व देष न फैल जाय ऐसी सम्हाल सम्यक्ती रखता है। परस्पर प्रेम, विनय जो लोकप्रसिद्ध है उसको वह करता हुआ सर्वको सुखदाई व हितकारी रहेगा। जहां धर्मकी दृष्टिसे कुदेव, कुगुरु व कुशास्त्र व कुधर्मकी विनयका भाव आयगा उसको वह नहीं करेगा। किसी भय व आशा व लाज व स्नेह व लोभके वशमें नहीं पड़ेगा। जो शिथिल श्रद्धालु हो मिथ्यात्वकी अनुमोदना करेंगे ये अवश्य मिथ्यात्वका बंध करके दुर्गतिके पात्र होंगे।