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मो.मा. प्रकाश " भासता नाहीं । अर यहां तिस वस्तुका भावहीका नाम तत्व कह्या। सो भाव भासे विना| ॥ तत्वार्थश्रद्धान कैसे होय । भावभासना कहा, सो कहिए है
_ जैसे कोऊ पुरुष चतुर होनेके अर्थि शास्त्रकरि स्वर ग्राम मूर्छना रागनिका स्वरूप ताल | तानके भेद तिनको सीखे है । परन्तु स्वरादिकका खरूप नाही पहिचान है। स्वरूपपहिचानि । भये बिना अन्य स्वरादिककों अन्य स्वरादिकरूप माने है । वा सत्य भी मान है, तो निर्णय करि नाहीं माने है । ताते वाकै चतुरपनो होय नाहीं। तैसें कोऊ जीव सम्यक्ती होनेकै । अर्थि शास्त्रकरि जीवादि तत्वनिका स्वरूपों सीखे है । परंतु तिनका खरूपको नाहीं पहिचान है। स्वरूप पहिचाने विना अन्य तत्वनिकौं अन्य तत्वरूप मानि ले है। वा सत्य भी मान है, तो निर्णयकरि नाहीं माने है । ताते वाकै सम्यक्त्व होय नाहीं। बहुरि जैसें कोई शास्त्रादि पढ़या है, वा न पढ़या है, जो खरादिकका स्वरूपको पहिचान है, तो वह चतुर ही है। तैसें शास्त्र पढ़या है वा न पढ़या है, जो जीवादिकका स्वरूप पहिचाने है, तो वह सम्य
दृष्टी ही है। जैसें हिरण रागादिकका नाम न जाने है, अर ताका स्वरूपको पहिचान है । | तेसै तुच्छबुद्धि जीवादिकका नाम न जाने है, पर तिनका स्वरूपको पहिचान है। यह मैं || हूँ, यह पर है, ए भाष बुरे हैं, ए भले हैं, ऐसे स्वरूप पहिचान ताका नाम भावभासना है। शिवभूति मुनि जीवादिकका नाम न जाने था, मर “तुषमाषभिन्न” ऐसा घोखने लागा, सो ३३१
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