Book Title: Tarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Author(s): Taranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
Publisher: Mathuraprasad Bajaj

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Page 963
________________ मोमा. प्रकाश 2023400 पाइप है । तातें तत्वार्थश्रधान सम्यक्त्वका लक्षण है । बहुरि प्रश्न -- जो कहीं शास्त्रनिविषै अरहंतदेव निर्बंथ गुरु हिंसारहित धर्मका श्रद्धधानकों सम्यक्त्व का है, सो कैसें है । ताका समाधान,— अरहंत देवादिका श्रद्धान होने वा कुदेवादिकका श्रद्धान दूर होनेकरि गृहीत मिथ्यात्वका अभाव हो है । तिस अपेक्षा याकौं सम्यक्त्वी कया है । सर्वथा सम्यक्त्वका लक्षण यह नाहीं । जातै द्रव्यलिंगी मुनि आदि व्यवहार धर्मके धारक मिथ्यादृष्टी तिनिकै भी ऐसा श्रद्धान हो है । अथवा जैसे अणुव्रत महाव्रत होतें देशचारित्र सकलचारित्र होय, कान होय । परंतु अणुव्रत भए बिना देशचारित्र कदाचित् न होय अर महात्रत धारे बिना सकलचारित्र कदाचित् न होय । तातें इनि व्रतनिकों अन्वयरूप कारण जानि कारणविषै कार्यका उपचारकरि इन्कौं चारित्र कह्या । तैसें अरहंत देवादिकका श्रद्धान होते, म्यक्त्व होय वा न होय । परंतु अरहंतादिकका श्रद्धान भए बिना तत्वार्थश्रद्धानरूप सम्यक्व कदाचित होय । तातैं अरहंतादिकके श्रद्धानको अन्वयरूप कारण जानि कारणविषै कार्यका उपचारकरि इस श्रद्धानकों सम्यक्त्व का है। याही याका नाम व्यवहारसम्यक्त्व हैं । अथवा जाकै तत्त्वार्थश्रद्धान होय, ताकै सांचा अहंतादिकके स्वरूपका श्रद्धान होय ही | होय । तत्रार्थ श्रद्धा विना पचकरि अरहंतादिकका श्रद्धान करें, परंतु यथावत् स्वरूपकी स १०००००*20001000-10000 000000000 ५०१

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