Book Title: Tarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Author(s): Taranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
Publisher: Mathuraprasad Bajaj

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Page 975
________________ मो.मा. प्रकाश - SORN000200506.00000000000000000000ccootcoRCHOOH3COOkpooooooopGOGHORoolackoolackoola6000 और सर्व सम्यक्त्व तौ निमित्तमात्र हैं। वा भेदकल्पना किए आत्मा अर सम्यक्त्वकै भिन्नता | कहिए है । तातें और सर्व व्यवहार कह्या । ऐसें जानना । या प्रकार निश्चय सम्यक्त्व अर व्यवहार सम्यक्त्वकरि सम्यक्त्वके दोय भेद हो हैं । अर अन्य निमित्तादिककी अपेक्षा आज्ञासम्यक्त्वादि सम्यक्त्वके दश भेद कहे हैं, सो आत्मानुशासनविर्षे कहा है, आज्ञामार्गसमुद्भवमुपदेशाप्सूत्रबीजसंक्षेपात् ।। _ विस्ताराभ्यां भवमवगाढ़परमावगाढ़े च ॥ ११ ॥ याका अर्थ-जिनआज्ञाते तत्वश्रद्धान भया होय, सो आज्ञा सम्यक्त्व है। यहां इतना जानना-"मोकौं जिनआज्ञा प्रमाण है" इतना ही श्रद्धान सम्यक्त्व नाहीं है । आज्ञा मानना ।। तौ कारणभूत है। याहीते यहां आज्ञात उपज्या कह्या है। तातै पूर्व जिनआज्ञा माननेते पीछे जो || तत्वश्रद्धान भया, सो आज्ञासम्यक्त्व है। ऐसही निर्ग्रन्थमार्गके अवलोकन तत्वश्रद्धान भया होय, सोमार्ग सम्यक्त्व है।बहुरि उत्कृष्ट पुरुष तीर्थकरादिक तिनके पुराणनिका उपदेशजो उपज्या स-। म्यग्ज्ञान ताकरि उत्पन्न आगमसमुद्रविर्षे प्रवीणपुरुषनिकरि उपदेश आदितै भई जो उपदेशकदृष्टि सो उपदेशसम्यक्त्वहै।मुनिके आचरणकाविधानको प्रतिपादनकरता जो आचारसूत्र नाहि | सुनकरिश्रद्धानकरना जो होय,सो सूत्रदृष्टि मलेप्रकार कहीं है। यह सूत्रसम्यक्त्वहै। बहुरि बीज जे गणितज्ञानको कारण तिनकरि अनुपमा दर्शनमोहका उपशभके चलते दुष्कर है जाननेकी SHORDaolarstoodacoornata0193700186/oojacroopwoodpoot0200406/o olaxTHOKIGToolsexo0OGookDorado0506104 - ५१३ -

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