________________
मो.मा.
प्रसंग पाय व्याख्यान हो है, सो कोई तो जैसाका तैसा हो है, कोई ग्रंथकर्ताका विचारकै अप्रकाश
नुसार होय, परंतु प्रयोजन अन्यथा न हो है। _____ ताका उदाहरण-जैसें तीर्थंकर देवनिके कल्याणकनिविषे इंद्र आया, यह कथा तो सत्य है । बहुरि इंद्र स्तुति करी, ताका ब्याख्यान किया, सो इंद्र तो और ही प्रकार स्तुति कीनी थी, अर यहां ग्रंथकर्ता और ही प्रकार स्तुति कीनी लिखी । परंतु स्तुतिरूप प्रयोजन अन्यथा न भया । बहुरि परस्पर किनिहूकै वचनालाप भया । तहां उनके और प्रकार अक्षर
निकसे थे, यहां ग्रंथकर्ता अन्य प्रकार कहे । परंतु प्रयोजन एक ही दिखावै है । वहुरि नगर | 1 वन संग्रामादिकका नामादिक तौ यथावत् ही लिखे, अर वर्णन हीनाधिक भी प्रयोजनकों |
पोषता निरूपै है । इत्यादि ऐसे ही जानना । बहुरि प्रसंगरूप कथा भी ग्रंथकर्ता अपना विचा1 र अनुसार कहै । जैसें धर्मपरीक्षाविषे मूर्खनिकी कथा लिखी, सो ए ही कथा मनोवेग कही थी, ऐसा नियम नाहीं। परंतु मूर्खपनाकों ही पोषती कोई वार्ता कही, ऐसा अभिप्राय पोषे है । ऐसें ही अन्यत्र जानना । यहां कोऊ कहै-अयथार्थ कहना तो. जैन शास्त्रनिविर्षे संभव नाहीं । ताका उत्तर
___ अन्यथा तो वाका नाम है, जो प्रयोजन औरका और प्रगट करै । जैसे काहकों । कह्या-तू पेसें कहियो, वान वे ही अक्षर. तो. न कहे, परंतु तिसही प्रयोजन लिए कह्या ।