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मो.मा.
प्रकाश
उदाहरण झूठे हू हैं, परन्तु सांच प्रयोजनकों पोष हैं । तहाँ दोष नाहीं । यहाँ कोऊ क है, कूंठका तौ दोष लागे है । ताका समाधान - जो मूंठ है और सांचे प्रयोजनक पोषै है, तो उसको झूठ न कहिए हैं और जो सांचे भी हैं और झूठे प्रयोजनकों पोष तो वह झूठ ही हैं । ऐसें अलंकारयुक्त नामादिकविषै वचन अपेक्षा झूट सांच नाहीं, प्रयोजन अपेक्षा ठसांच है। जैसें तुच्छशोभासहित नगरीको इंद्रपुरीकै समान कहिए है, सो झूठ है। परंतु शोभाका प्रयोजनकों पोषै है, तातैं झूठ नाहीं । बहुरि “इस नगरीविषै छत्रहीकै दंड है अन्यत्र नाहीं" ऐसा कह्या, सो कूं है । अन्यत्र भी दंड देना पाईए है, परंतु तहां श्रन्यायवान् थोरे हैं न्यायवानकों ढंड न दीजिए हैं, ऐसा प्रयोजनकों पोषै है, तातै झूठ नाहीं । बहुरि बृहस्पति का नाम 'सुरगुरु' लिखें वा मंगलका नाम 'कुज' लिखें, सो ऐसे नाम अन्यमत अपेक्षा हैं । इनका अक्षरार्थ है, सो झूठा है । परंतु वह नाम तिस पदार्थकों प्रगट करे है, तातै झूठा नाहीं । ऐसें अन्य मतादिकके उदाहरणादि दीजिए हैं, सो झूठ हैं, परंतु उदाहरणादिकका तौ श्रद्धान करावना है नाहीं, श्रद्धान तौ प्रयोजनका करावना है, सो प्रयोजन सांचा है, दोष है नाहीं । बहुरि चरणानुयोगविषै छद्मस्थकी बुद्धिगोचर स्थूलपनाकी |पेक्षा लोकप्रवृत्तिकी मुख्यता लिए उपदेश दीजिए है । बहुरि केवलज्ञानगोचर सूक्ष्मपनाकी अपेक्षा न दीजिए है । जातै तिसका आचरण न होय सकै है । और यहां आचरण करावने
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