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मो.मा. प्रकाश
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सातै जैसे कोई धनवान् होय, परन्तु जो कुलविषै बड़ा होय ताक कुल अपेक्षा बड़ा जानि ताका सत्कार करें, तैसें आप सम्यक्कगुणसहित है, परंतु जो व्यवहारधर्मविषै प्रधान होय, ताक व्यवहारधर्मं अपेक्षा गुणाधिक मानि ताकी भक्ति करै है । ऐसा जानना । बहुरि ऐसें ही जो जीव बहुत उपवासादि करें, ताक़ तपखी कहिए है । यद्यपि जो कोई ध्यान अध्ययनादि विशेष करें है, सो उत्कृष्ट तपस्वी है । तथापि चरणानुयोगविषै बाह्यतपहीकी प्रधानता है । तातैं तिसहीकों तपस्वी कहिए है । याही प्रकार अन्य नामादिक जाननें । ऐसें ही अन्य अनेक प्रकार लिए चरणानुयोगविषै व्याख्यानका विधान जानना ।
अब द्रव्यानुयोगविषै कहिए है
जीवनिकै जीवादि द्रव्यनिका यथार्थ श्रद्धान जैसे होय, तैसें विशेष युक्ति हेतु दृष्टान्तादिकका यहां निरूपण कीजिए है । जातै याविषै यथार्थ श्रद्धान करावनेका प्रयोजन है । तहां यद्यपि जीवादि वस्तु अभेद हैं, तथापि तिनविषै भेदकल्पनाकरि व्यवहारतै द्रव्य गुण पर्यायादिकका भेद निरूपण कीजिए है । सो भी युक्त है । बहुरि प्रतीति धनावनेकै अर्थ अनेक युक्तिरि उपदेश दीजिये है, अथवा प्रमाणनयकरि उपदेश दीजिए हैं, बहुरि वस्तुका अनुमान प्रत्यभिज्ञानादिक करनेकों हेतु दृष्टांततादिक दीजिए हैं । ऐसें तहाँ वस्तुकी प्रतीति करावनेका उपदेश दीजिए है । बहुरि यहाँ मोक्षमार्गका श्रद्धान करावनेकै अर्थ
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