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प्रकाश
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मो.मा. भेद कहे, कहीं महावतादि होते भी द्रव्यलिंगीकौं असंयमी कह्या, तहां विरुद्ध न जानना ।
जाते सम्यग्ज्ञानसहित महावतादिक तौ चारित्र है, अर अज्ञानपूर्वक व्रतादिक भएं भी असंयमी ही है । बहुरि जैसे पंच मिथ्यात्वनिविषे भी विनय कह्या, अर बारह प्रकार तपनिविष भी विनय कह्या, तहां बिरुद्ध न जानना । जाते विनय करने योग्य नाही, तिनको भी | विनयकरि धर्म मानना, सो तो विनय मिथ्यात्व है अर धर्मपद्धतिकरि जे विनय करने योग्य | हैं, तिनका यथायोग्य विनय करना, सो विनय तप है । बहुरि जैसे कहीं तो अभिमानकी ।। । निंदा करी, कहीं प्रशंसा करी, तहां विरुद्ध न जानना । जाते मानकषायतें आपकों ऊंचा । | मनावनेकै अर्थ विनयादि न करें, सो अभिमान तौं निंद्य ही है, अर निर्लोभपनाते दीनता ।।
आदि न करै, सो अभिमान प्रशंसा योग्य है । बहुरि जैसे कहीं चतुराईकी निंदा करी, कहीं।। प्रशंसा करी, तहां विरुद्ध न जानना । जाते मायाकषायतै काहका ठिगनेक अर्थ चतुराई है। | कीजिए, सो तो निंद्य ही है अर विवेक लिएं यथासंभव कार्य करनेविषै जो चतुराई होय, सो | श्लाघ्य ही है । ऐसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि एक ही भावकी कहीं तो उसतें उत्कृष्टभावकी
अपेक्षाकरि निंदा करी होय, अर कहीं तिसते हीनभावकी अपेक्षाकरि प्रशंसा करी होय, तहां । विरुद्ध न जानना । जैसे किसी शुभक्रियाको जहां निंदा करी होय, तहां तो तिसते उंची || शुभक्रिया वा शुद्धभाव तिनकी अपेक्षा जाननी, भर जहां प्रशंसा करी होय, तहां तिसते |
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