Book Title: Tarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Author(s): Taranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
Publisher: Mathuraprasad Bajaj

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Page 957
________________ मो.मा. प्रतीति तहां भी बनी रहे है । ताते यहां अव्याप्तिपना नाहीं है । वहुरि प्रश्न-जो छद्मस्थकै । प्रकाश तो प्रतीति अप्रतीति कहना संभवै है, तातें तहां सप्त तत्वनिकी प्रतीति सम्यक्त्वका लक्षण कह्या सो हम मान्या, परंतु केवली सिद्ध भगवानकै तौ सर्वका जानपना समान रूप है । तहां सप्ततत्वनिकी प्रतीति कहना, संभवे नाहीं। अर तिनके सम्यक्त्व गुण पाइए ही है, ताते | तहां तिस लक्षणका अब्याप्तिपना आया । साका समाधान जैसे छद्मस्थके श्रुतज्ञानके अनुसार प्रतीति पाइए है, तैसें केवली सिद्धभगवानके 1 केवलज्ञानके अनुसार ही प्रतीति पाइए है । जो सप्त तत्वनिका स्वरूप पहिले ठीक किया था, | सो ही केवलज्ञानकरि जान्या। तहां प्रतीतिको परम अवगाढ़पनो भयो । याहीत परमअवगाढ सम्यक्त्व कह्या । जो पूर्व श्रद्धान किया था, ताकों झूठ जान्या होता, तों तहां अप्रतीति होती । सो तो जैसा सप्त तत्वनिका श्रद्धान छद्मस्थके भया था, तैसा ही केवली सिद्धभगवानके पाइए है । तातै ज्ञानादिककी हीनता अधिकता होते भी तिर्यंचादिक वा केवली सिद्ध भगवानकै सम्यक्त्व गुण समान ही कह्या । बहुरि पूर्व अवस्थाविर्षे यह माने था, संवर निर्जराकरि मोक्षका उपाय करना । पीछे मुक्ति अवस्था भए ऐसें मानने लगै, जो संवर निर्जराकरि हमारे मोक्ष भई । बहुरि पूर्वं ज्ञानकी हीनताकरि जीवादिकके थोड़े विशेष | जाने था, पीछे केवलज्ञान भए तिनके सर्व विशेष जानै । परन्त मूलभूत जीवादिकके * 6- 1000 మంద కాండ సందరాంపత్తం 100 గుండాలని ఆకు ४६५

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