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मो.मा. A वर्णन किया है, सो इसही प्रयोजनके अर्थि किया है। तार्को भी विचारि मोक्षका उपाय ।। প্রামা करना । सर्व उपदेशका तात्पर्य इतना है । इहां प्रश्न-जो मोक्षका उपाय काललब्धि आए
भवितव्यानुसारि बने है, कि मोहादिकका उपशमादि भए बने है, अथवा अपने पुरुषार्थ उद्यम किए वनै है, सो कहो । जो पहिले दोय कारण मिले बने है, तो हमकों उपदेश काहेको दीजिए है । अर पुरुषार्थ बने है, तो उपदेश सर्व सुने, तिनविर्षे कोई उपाय कर सके, कोई न करि सकै, सो कारण कहा। ताका समाधान____ एक कार्य होनेविषे अनेक कारण मिले हैं । सो मोक्षका उपाय बने है, तहां तो पूर्वोक्त तीनों ही कारण मिले हैं । अर न बने है, तहां तीनों ही कारण न मिले हैं। पूर्वोक्त तीन कारण कहे, तिनविषै काललब्धि वा होनहार तौ किछु वस्तु नाहीं । जिस कालविर्षे कार्य वनै,
सोई काललब्धि और जो कार्य भया सोई होनहार । बहुरि कर्मका उपशमादिक है, सो पुद्गलकी । शक्ति है । ताका आत्मा कर्ता हर्त्ता नाहीं। बहुरि पुरुषार्थत उद्यम करिए है, सो यह आत्माका
कार्य है । तातें आत्माको पुरुषार्थकरि उद्यम करनेका उपदेश दीजिए है । तहां यह आत्मा जिस कारणनै कार्यसिद्धि अवश्य होय, तिसकारणरूप उद्यम करे, तहां तों अन्य कारण
मिले ही मिलें, अर कार्यकी भी सिद्धि होय ही होय। बहुरि जिस कारणते कार्यसिद्धिहोय, ॥अथवा नाहीं भी होय, जिस कारणरूप उद्यम करै, तहां अन्य कारण मिलें तो कर्यसिद्धि होय,