Book Title: Tarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Author(s): Taranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
Publisher: Mathuraprasad Bajaj

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Page 907
________________ मो.मा. १००००१० • जैसे कामी पुरुषनिकी कथा सुनें आपके भी कामका प्रेम बधे हैं, तैसें धर्मात्मा पुरुषनिकी प्रकाश कथा सुनें आपके धर्मकी प्रीति विशेष बधे है । तातें प्रथमानुयोग का अभ्यास करना योग्य है । बहुरि केई जीव कहें हैं—करणानुयोग विषे गुणस्थान मार्गणादिकका वा कर्मप्रकृतिनिका कथन किया, वा त्रिलोकादिकका कथन किया, सो तिनकों जानि लिया 'यह ऐसें है' 'यह ऐसें हैं' वामें अपना कार्य कहा सिद्ध भया । के सौ भक्ति करिए, के व्रत दानादि करिए, कै आत्मानुभवन करिए, इनतें अपना भला होय । ताकौं कहिए है परमेश्वर तौ वीरताग हैं । भक्ति किएं प्रसन्न होयकरि किछू करते नाहीं । भक्ति करते मंदकपाय हो है, ताका स्वयमेव उत्तम फल हो है । सो करणानुयोगकै अभ्यासविषै तिसतें भी अधिक मंद कषाय होय सके है, तातै याका फल उत्तम हो है । बहुरि बतदानादिक तौ कषाय घटावनेके बाह्य निमित्तका साधन है, कार चरणानुयोगका अभ्यास किएं तहां उपयोग लगि जाय, तब रागादिक दूरि होंय, सो यह अंतरंग निमित्तका साधन है । तातें यह विशेष कार्यकारी है । व्रतादिक धारि अध्ययनादि कीजिए है । बहुरि आत्मानुभव सर्वोत्तम कार्य है । परंतु सामान्य अनुभवविषै उपयोग भै नाहीं, पर न भै तब अन्य विकल्प होय । तहां करणानुयोगका अभ्यास होय, तौ तिस विचारविषै उपयोगको लगावें । यह विचार. वर्त्तमान भी रागादिक घटावे है । अर आगामी रागादिक घटावनेका कारण है । तातै यहां (la ર

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