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मो.मा.11 मेथुनसंज्ञा कही । महमिंद्रनिके दुखका कारण व्यक्त नाही, तो भी कदाचित् असाताका उ. | प्रकाश
। दय कह्या । नारकीनिकै सुखका कारण व्यक्त नाहीं, तो भी कदाचित् साताका उदय कहा ।।
ऐसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि करणानुयोग सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रादिक धर्मका निरूपण || | कर्मप्रकृतीनिका उपशमादिककी अपेक्षा लिए सूक्ष्मशक्ति जैसें पाईए तेसै गुणस्थानादिविषै ।। | निरूपण करे है, वा सम्यग्दर्शनादिकके विषयभूत जीवादिक तिनकाभी निरूपण सूक्ष्मभेदादि लिए करें है। यहां कोई करणानुयोगकै अनुसारि आप उद्यम करे, तो होय सकै नाहीं। करणानुयोगविर्षे तो यथार्थ पदार्थ जनावनेका मुख्य प्रयोजन है । आचरण करावनेकी मुख्यता नाहीं । तातै यह तो चरणानुयोगके अनुसार प्रवत्ते, तिसत जो कार्य होना होय सो खय| मेव ही हो है । जैसे आप कर्मनिका उपशमादि किया चाहै, तो कैसे होय । आप तो तत्वादिकका निश्चय करनेका उद्यम करे, तातै स्वयमेव ही उपशमादिक सम्यक्त होय। ऐसे ही । अन्यत्र जानना । एक अन्तर्मुहूर्तविणे ग्यारवां गणस्थानसौं पड़ि क्रमते मिथ्यादृष्टी होय बहुरि । चदिकरि केवलज्ञान उपजावै । सो ऐसे सम्यक्तादिकके सूक्ष्मभाव बुद्धिगोचर आवते नाही, ताते करणानुयोगकै अनुसारि जैसाका तैसा जानि तो ले, अर प्रवृत्ति बुद्धिगोचर जैसे भला || | होय, तैसें करै । बहुरि करणानुयोगविर्षे भी कहीं उपदेशकी मुख्यता लिए व्याख्यान हो है, ताको सर्वथा तैसें ही न मानना । जैसे हिंसादिकका उपायकों कुमतिज्ञान कह्या, अन्य मता-||४२१
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