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मो.मा. प्रकाश
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अवस्थाविर्षे विकल्प छूटता नाही, ताते इस जीवकों धर्मविरोधी कार्यनिकों छुड़ावनेका धर्म| साधनादि कार्यनिके ग्रहण करावनेका उपदेश याविर्षे है । सो उपदेश दोय प्रकार करिए है।।
एक तो ब्यवहारहीका उपदेश दीजिये है, एक निश्चयसहित व्यवहारका उपदेश दीजिये है। | तहां जिन जीवनिकै निश्चयका ज्ञान नाहीं है, वा उपदेश दिए भी होता न दीसै, ऐसे मिथ्यादृष्टी जीव किछु धर्मकों सन्मुख भए तिनको व्यवहारहीका उपदेश दीजिए है। बहुरि जिन | जीवनिकै निश्चय व्यवहारका ज्ञान है, वा उपदेश दिए तिनका ज्ञान होता दीसै है, ऐसे सम्यग्दृष्टी जीव वा सम्यक्तकौं सन्मुख मिथ्यादृष्टी जीव तिनकौं निश्चयसहित ब्यवहारका उप| देश दीजिए है । जाते श्रीगुरु सर्व जीवनिके उपकारी हैं । सो असंज्ञी जीव तौ उपदेश | ग्रहणे योग्य नाही, तिनका तो उपकार इतना ही किया और जीवनिकों तिनकी दयाका | उपदेश दिया । बहुरि जे जीव कर्मप्रबलताते निश्चयमार्गकों प्राप्त होय सकें नाहीं, तिनका | इतना ही उपकार किया, जो उनको ब्यवहार धर्मका उपदेश देय कुगतिके दुःखनिका कारण पापकार्य छुड़ाय सुगतिके इंद्रियनिके सुखका कारण पुण्यकार्य तिसविर्षे लगाया । जेता दुख मिट्या, तेता ही उपकार भया । बहुरि पापीकै तौ पापवासना ही रहै, अर कुगतिविषै। जाय तहां धर्मका निमित्त नाहीं । तातै परंपराय दुखहीकों पावौ करे। अर पुण्यवानकै धर्मवासना रहै अर सुगति विषै जाय, तहां धर्मके निमित्त पाईए, ताः परंपराय सुखकों पावै ।।२३
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