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प्रो.मा.
प्रकाश
यह करणानुयोगका प्रयोजन जानना । 'करना' कहिए गणितकार्यकौं कारण 'सूत्र' तिनका जाविषै 'अनुयोग' अधिकार होय, सो करणानुयोग है । इसविषे गणितवर्णनकी मुख्यता है, ऐसा जानना ।
बहुरि चरनुयोगविषै नानाप्रकार धर्मके साधन निरूपणकरि जीवनिकों धर्मविषै लगाईये है । जे जीव हित अहितकों जानें नाहीं, हिंसादि कषाय कार्यनिविषै तत्पर होय रहे हैं, तिनकों जैसे वै पापकार्बनिकों छोड़ि धर्मकार्यविषै लागें, तैसें उपदेश दिया। ताकौं जिनधर्म आचरण करनेकों सन्मुख भए, ते जीव गृहस्थधर्मका विधान सुनि आप जैसा धर्म सधै, तैसा धर्मसाधनविधै लागे हैं । ऐसें साधनतै कषाय मंद हो है । ताके फलतें इतना तो हो है, जो बु. गतिविषै दु.ख न पांवे अर सुगतिविषै सुख पावे । बहुरि ऐसे साधनतैं जिनमत का निमित्त बन्या रहे । तहां तवज्ञानकी प्राप्ति होनी होय, तौ होय जावै । बहुरि जीवतत्वके | ज्ञानी होयकरि चरणानुयोगको अभ्यासे हैं, तिनकों ए सर्व आचरण अपने वीतरागभावके छा नुसारी भाते हैं । एकोदेश वा सर्वदेश वीतरागता भए ऐसी श्रावकदशा ऐसी मुनिदशा हो है । जातैं इनके निमित्त नैमित्तिकपनो पाईए हैं । ऐसें जानि श्रावक मुनिधर्मके विशेष पहचानि जैसा अपना वीतरागभाव भया होय, तैसा अपने योग्य धर्मकों साधे है। तहां जेता अंशां वीतरागता हो है, तार्कों कार्यकारी जाने है, जेता अंशां राग रहे है, ताक हेय जाने है ।
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