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प्रकाश
भो.मा.|| है। बहुरि आप तो फल जैसा अन्तरंग परिणाम होगा, तैसा ही पावेगा । जातें परिणाम-||
शून्य शरीरकी क्रिया फलदाता नाहीं । बहुरि यहां प्रश्न-जो शास्त्रविर्षे तो अकामनिर्जरा कही है। तहां विना चाहि भूख तृषादि सहे निर्जरा हो है। तो उपवासादिकरि कष्ट सहे कैसे निर्जरा न होय । ताका समाधान
अकामनिर्जराविर्षे भी बाह्य निमित्त तो विना चाहि भूख तृषाका सहना भया है । अर तहां मन्दकषायरूप भाव होय, तो पापकी निर्जरा होय, देवादि पुण्यका बंध होय । भर जो | तीनकषाय भए भी कष्ट सहे पुण्यबंध होय, तो सर्व तिर्यंचादिक देव ही होंय । सो बने | नाहीं । तैसें ही चाहिकरि उपवासादि किए तहां भूख तृषादि कष्ट सहिए है । सो यह बाह्यनिमित्त है ।यहां जैसा परिणाम होय, तैसा फल पावै है । जैसे अन्नों प्राण कह्या । ऐसें । बाह्यसाधन भए अन्तरंगतपकी वृद्धि हो है । ताते उपचारकरि इनकौं तप कहे हैं । जो बाह्य । तप तो करें भर अन्तरंगतप न होय, तो उपचारतें भी वाकों तपसंज्ञा नहीं। सोई कह्या है
कषायविषयाहारो त्यागो पत्र विधीयते ।
उपवासः स विज्ञेय शेषं लंघनकं विदुः॥ __जहां कषाय विषय आहारका त्याग कीजिए, सो उपवास जानना । शेषकों लंघन श्रीगुरु कहै हैं । यहां कहेगा, जो ऐसे है, तो हम उपवासादि न करेंगे। ताकों कहिए है
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