________________
मो.ना.
जैसे तीर्थंकरके शरीरकी प्रभाकों सूर्यप्रभाते कोठ्या गुणी कही । तहां तिनकी एक जाति प्रकाश नाहीं। परन्तु लोकवि सूर्यप्रभाकी महिमा है, तातें भी बहुत महिमा जनावनेकों उपमालंकार
कीजिए है । तैसें सिद्धसुखकों इंद्रादिसुखनै अनन्तगुणा कह्या । तहां तिनकी एकजाति नाही । परन्तु लोकविष इंद्रादिसुख की महिमा है, तातें भी बहुत महिमा जनावनेकों उपमालंकार की
जिए है । बहुरि प्रश्न-जो सिद्धसुख अर इन्द्रादिसुख की एकजाति वह जाने है, ऐसा निश्चय | । तुम कैसे किया। ताका समाधान
जिस धर्मसाधनका फल स्वर्ग मान है, तिस धर्मसाधनहीका फल मोक्ष मान है। कोई जीव इन्द्रादिपद पावै, कोई मोक्ष पावे, तहां तिन दोऊनिकै एकजाति धर्मका फल भया माने। ऐसा तो माने, जो जाकै साधन थोरा हो है, सो इंद्रादिपद पावै है, जाके संपूर्ण साधन होय, सो मोन पावै है । परन्तु तहां धर्मकी जाति एक जाने है । सो जो कारणको एक जाति जाने, ताको कार्यकी भी एक जातिका श्रद्धान अवश्य होय । जाते कारण विशेष भए ही कार्य। विशेष हो है । तातै हम यह निश्चय किया, वाकै अभिप्रायविष इंद्रादिसुख अर सिद्धसुख की जातिका एक जातिका श्रद्धान है । बहुरि कर्मनिमित्ततें आत्माकै औपाधिक भाव थे, तिनका अभाव होते शुद्धखभावरूप केवल आत्मा आप भया । जैसें परमाणु स्कंधते बिछुरे शुद्ध । हो हैं, तैसें यह कर्मादिकतै भिन्न भए शुद्ध हो है । विशेष इतना-वह दोऊ अवस्थाविषै ।
CREENNEPAPEECeokicroriteroccorticorg.cooconadroo500CrookP80010300930
व्यतmammymaamerememe
३