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मो.मा. सादि तर मुख्य निर्जराका कारण कैसे रह्या । अशुभ शुभ परिणाम बंधके कारण ठहरे, शुद्ध प्रकाश
परिणाम निर्जराके कारण ठहरे। यहां प्रश्न-जो तत्वार्थसूत्रविषै “तपसा निर्जरा च” ऐसा I कैसे कया है । ताका समाधान
शास्त्रविर्षे “इच्छानिरोधस्तपः” ऐसा कया है । इच्छाका रोकना ताका नाम तप है । सो | शुभ अशुभ इच्छा मिटे उपयोग शुद्ध होय, तहां निर्जरा हो है । तातै तपकरि निर्जरा कही ।। है । यहां कोऊ कहै, आहारादिरूप अशुभकी तौ इच्छा दूरि भए ही तप होय। परंतु उपवा| सादिकांवा प्रायश्चित्तादि शुभकार्य हैं, तिनकी इच्छा तो रहै। ताका समाधान__ज्ञानी जननिके उपवासादिककी इच्छा नाहीं है। एक शुद्धोपयोगकी इच्छा है ।। | उपवासादि किए शुद्धोपयोग बधै है, तातें उपवासादि करे हैं। बहुरि जो उपवासादिकतें | शरीरकी वा परिणामनिकी शिथिलताकरि शुद्धोपयोग शिथिल होता जानै, तहां आहारादिक यह हैं । जो उपवासादिकही सिद्धि होय, तो अजितनाथादिक तेईस तीर्थकर दीक्षा लेय दोय उपवास ही कैसे धरते । उनकी तौ शक्ति भी बहुत थी। परंतु जैसे परिणाम भए तैसें बाह्यसाधनकरि एक वीतराग शुद्धोपयोगका अभ्यास किया। यहां प्रश्न-जो ऐसे है, तो | अनशनादिककों तपसंज्ञा कैसे भई । ताका समाधान
इनकों बाह्यतप कहै हैं । सो बाह्यका अर्थ यह है, जो बाह्य औरनिकों दोखे, यह तापसी ३५०
SPOOG-ORGookxiaoxaci00180600:09/2000rokgeREmolkomalan003-013-akaalotodon