________________
मो.सा. भिन्नता प्ररूपै। परंतु में इस शरीरादिकतें भिन्न हूं, ऐसा भाव भासे नाहीं। बहुरि पर्यायप्रकाश
| विषे जीव पुद्गलकै परस्पर निमित्तते अनेक क्रिया हो हैं, तिनकों दोय द्रव्यका मिलापकरि निपजी जाने । यह जीवकी क्रिया है, ताका पुदमल निमित्त है, यह पुद्गलकी क्रिया है, ताका || जीव निमित्त है, ऐसा भिन्न भिन्न भाव भासे नाहीं। इत्यादि भाव भासे बिना जीव अजीवका सांचा श्रद्धानी न कहिए । तातै जीव अजीव जाननेका तौ यह ही प्रयोजन था, सो भया नाहीं। बहुरि आश्रवतत्वविष जे हिंसादिरूप पापास्रव हैं, तिनकों हेय जाने है । अहिंसादि| रूप पुण्यास्रव है, तिनको उपादेय माने है । सो ए तो दोऊ ही कर्मबंधके कारण इनविषै ।। | उपादेयपना मानना सोई मिथ्यादृष्टि है । सोई समयसारका बंधाधिकारविषे कह्या है--
सर्व जीवनिकै जीवन मरण सुख दुःख अपने कर्मके निमित्त तैं हो है। जहां अन्य। जीव अन्य जीवकै इन कार्यनिका कर्ता होय, सोई मिथ्याध्यवसाय बंधका कारण है। तहां अन्य जीवको जिवावनेका वा सुखी करनेका अध्यवसाय होय, सो तौ पुण्यबंधका कारण है,। |अर मारनेका वा दुःखी करनेका अध्यवसाय होय सो पापबन्धका कारण है । ऐसें अहिंसावत् । | सत्यादिक तौ पुण्यबन्धको कारण हैं, अर हिंसावत् असत्यादिक पापबन्धों कारण हैं। ए | सर्व मिथ्याध्यवसाय हैं, ते त्याज्य हैं । तातै हिंसादिवत् आर्हतादिकको भी बंधका कारण | जानि हेय ही मानना । हिंसाविर्षे मारनेकी बुद्धि होय, सो वाका आयु पूरा हुवा विना मरै
HOO10000-002048670008400-ackOTOCOMasoocraco-800008-TOOOOOOHOROOOcxvorpor060
ERE
%