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मो.मा. प्रकाश
कोई सर्वज्ञदेव धर्म अधर्म मोक्ष है नाहीं। अर परलोक नाही वा पुण्यगपका फल नाहीं। यह इंद्रियगोचर जितना है सो ही लोक है । ऐसें चार्वाक कहें हैं । तहां वाकौं पूछिए हैसर्वज्ञदेव इस काल क्षत्रविष नाही कि सर्वदा सर्वत्र नाहीं । इस कालत्रविर्षे तो हम भी नाहीं माने हैं । अर सर्व कालत्रविष नाहीं ऐसा सर्वज्ञविना जानना किसकै भया । जो सर्व कालक्षेत्रकी जानै सो ही सर्वज्ञ अर न जाने है तो निषेध कैसे करे है। बहुरि धर्म अधर्म लोकविषे प्रसिद्ध हैं । जो ए कल्पित होय तो सर्वजन प्रसिद्ध कैसे होय । बहुरि धर्म अधर्म || रूप परणित होती देखिए है, ताकरि बर्तमानहीमें सुखी दुखी होते देखिए हैं । इनिकौं । कैसें न मानिए । अर मोक्षका होना अनुमानविणे आवै है । क्रोधादिक दोष काहकै हीन हैं काहूकै अधिक हैं सो जानिए है काइकै इनिकी नास्ति भी होती होगी । अर ज्ञानादिक गुण काहूकै हीन काहूकै अधिक भासें हैं, सो जानिए है काहूकै संपूर्ण भी होते होंयगे । ऐसें जाकै समस्तदोषनिकी हानि गुणनिकी प्राप्ति होय सो ही मोक्ष अवस्था है । बहुरि पुण्य पापका फल | भी देखिए है। कोऊ उद्यम करै तो भी दरिद्री रहै कोऊकै स्वयमेव लक्ष्मी होय । कोऊ शरीर | का यत्न करै, तो भी रोगी रहै । काहूके विनाही यत्न नीरोगता रहै । इत्यादि प्रत्यक्ष देखिए है । सो याका कारण कोई तो होगा । जो याका कारण सो ही पुण्य पाप है । बहुरि परलोक भी प्रत्यक्ष अनुमानतें भासे है। व्यंतरादिक हैं ते अवलोकिए है। मैं अमुक था सो देव