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मो.मा. प्रकाश विष जाय । बंध तो अंतरंग परिणामनितें होय है । सो अन्तरंग जिनधर्मरूप परिणाम
भए विना ग्रैवेयक जाना संभवैनाहीं । बहुरि व्रतादिरूप शुभोपयोगही | देवका बंध माने, अर याहीकों मोक्षमार्ग माने, सो बंधमार्ग मोक्षमार्गकों एक | किया, सो यह मिथ्या है। बहुरि व्यवहारधर्मविष अनेक विपरीति निरूपै हैं । |
निंदकौं मारने में पाप नाहीं, ऐसा कहै हैं। सो अन्यमती निंदक तीर्थंकरादिकके होते भी। । भए, तिनकों इन्द्रादिक मारे नाहीं । सो पाप न होता, तो इन्द्रादिक क्यों न मारं । बहुरि प्रति| माकै आभरणादि बनावै हैं, सो प्रतिबिंब तौ वीतरागभाव वधावनेकों कारण स्थापन किया था।
आभरणादि बनाए, अन्यमतकी मूर्तिवत् यह भी भए। इत्यादि कहां तांई कहिए, अनेक | अन्यथा निरूपण करै हैं । या प्रकारश्वेतांबरमत कल्पित जानना। यहां सम्यग्दर्शनका अन्यथा निरूपणते मिथ्यादर्शनादिकहीकौं पुष्टता हो है । ताते याका श्रद्धानादि न करना।
बहुरि इन श्वेतांबरनिविष ही ढूंढिया प्रगट भए हैं, ते आपों सांचे धर्मात्मा माने हैं, । सो भ्रम है । काहेत सो कहिए है,
केई तौ भेष धारि साधु कहावै हैं, सो उनके ग्रंथनिकै अनुसार भी ब्रत समिति गुप्तिआदिका साधन नाहीं भासै है। बहुरि मन बचन काय कृत कारित अनुमोदनाकरि सर्व सावद्ययोग त्याग करनेकी प्रतिज्ञा करें, पीछे पाल नाहीं। पालककों वा भोलाकौं वा शूद्रादिकको २४०