________________
मो.मा. प्रकाश
करि ठिगे हुए धर्मका विचार करें नाहीं। उनकी भक्तिविष तत्पर हो हैं। सो बड़े पापकों बड़ा धर्म मानना, इस मिथ्यात्वका फल कैसे अनन्तसंसार न होय । एक जिनवचनकों अ-1 न्यथा माने महापापी होना, शास्त्रविषे कहा है। यहां तो जिनवचनकी किछु बात राखी ही। | नाहीं । इस समान और पाप कौन है। अब यहां कुयुक्तिकरि जे तिन कुगुरुनिका स्थापन है। | करे हैं, तिनका निराकरण कीजिए है। तहां वह कहै हैं, गुरूविना तो निगुरा होय, अर वैसे || | गुरु प्रवार दीसे नाहीं । ताते इनहीकों गुरु मानना । ताका उत्तर,
निगुरा तौ वाका नाम है, जो गुरु माने ही नाहीं । बहुरि जो गुरुको तो मान अर इस || क्षेत्रविषे गुरुका लक्षण नादेखि काहूकों गुरु न माने, तो इस श्रद्धानते तो निगुरा होता नाहीं।। । जैसें नास्तिक्य तो वाका नाम है, जो परमेश्वरकों माने ही नाही। (बहुरि जो परमेश्वरकों तो मानै अर इस क्षेत्रवि परमेश्वरका लक्षण न देखि. काहूको परमेश्वर न माने, तौ नास्तिक्य। होता नाहीं । तैले ही यह जानना । बहुरि वह कहै हैं, जैनशास्त्रनिविषे अबार केवलीका तौ । अभाव कया है, मुनिका तो अभाव कया नाहीं । ताका उत्तर,
ऐसा तो कह्या नाहीं, इन देशनिवि सद्भाव रहेगा । भरत क्षत्रिय कहै हैं, सो भरतबत्र तो बहुत बड़ा है । कहीं सद्भाव होगा, तातै अभाव न कया है । जो तुम रहो हो, जिसही क्षेत्रविष सद्भाव मानोगे, तो.जहां ऐसे भी मुनि न पावोगे, तहां जावोगे तब किसकों
१२२
poracterta00016footadoot20-00809001058001000000000000HRIGforopaikaragurmerits