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मो.मा. ME
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अपेक्षा शुद्ध मानो हो, तो में ऐसा होनेयोग्य हौं, ऐसा मानौ । ऐसें काहेको मानों हो । तातें
आपकों शुद्ध रूप चितवन करना भ्रम है। काहेत-तुम आपकों सिद्ध समान मान्या, तो यह | संसार अवस्था कौनकी है । अर तुम्हारे केवल ज्ञानादिक हैं, तो ये मतिज्ञानादिक कौनके हैं। घर द्रव्यकर्म नोकरहित हो, तो ज्ञानादिककी व्यक्तता क्यों नहीं। परमानन्दमय हो, तो अब कर्त्तव्य कहा रहा। जन्म मरणादि दुःख ही नाही, तो दुखी कैसे होत हो । तातै अन्य अवस्थाविषै अन्य अवस्था मानना भ्रम है। यहां कोऊ कहै-शास्त्रविणे शुद्ध चितवन करनेका उपदेश काहेको दिया है । ताका उत्तर____एक तो द्रव्यअपेक्षा शुद्धपना है, एक पर्याय अपेक्षा शुद्ध पना है। तहां द्रव्यअपेक्षा तौ । परद्रव्यते भिन्नपनौ वा अपने भावनित अभिन्नपनौ ताका नाम शुद्ध पना है । अर पर्याय अपेक्षााउपाधिकभावनिका अभाव होना, ताका नाम शुद्धपना है । सो शुद्धचितवनविष द्रव्य | अपेक्षा शुद्धपना ग्रहण किया है । सोई समयसारव्याख्याविर्षे कह्या है
___ एष एवाशेषद्रव्यान्तरभावेभ्यो भिन्नत्वेनोपास्यमानः शुद्ध इत्यभिधीयते ।
याका अर्थ-जो आत्मा प्रमत्त अप्रमत नाहीं है । सो यह ही समस्त परद्रव्यनिके भावनितै भिन्नपनेकरि सेया हुवा शुद्ध ऐसा कहिए है । बहुरि तहां ही ऐसा कह्या
__ समस्तकारकचक्रप्रक्रियोत्तीर्णनिर्मलानुभूतिमात्रत्वाच्छुद्धः।
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