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मो.मा. प्रकाश
बहुरि कर्म नोकर्मका सम्बन्ध होते मात्माकों निबंध माने, सो प्रत्यक्ष इनका बंधन | देखिए है । ज्ञानाधरणादिकते ज्ञानादिकका घात देखिए है । शरीरकरि ताकै अनुसार अव|स्था होती देखिए है । बन्धन कैसे नाहीं । जो बन्धन न होय, तो मोक्षमार्गी इनके नाशका | उद्यम काहेकों करें। यहां कोऊ कहै-शास्त्रनिविषे आत्माकों कर्म नोकर्मते भिन्न अवद्धस्पृष्ट कैसें कहा है । ताका उत्तर। सम्बध अनेक प्रकार हैं। तहां तादात्म्यसम्बन्धअपेक्षा आत्माकों कर्म नोकर्मते भिन्न कहा है । तहां द्रव्य पलटकरि एक नाहीं होय जाय हे अर इस ही अपेक्षा अवद्धस्पष्ट कह्या है। बहुरि निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध अपेक्षा बंधन है ही । उनके निमित्ततें आत्मा अनेक अवस्था धरै ही है। ताते सर्वथा निबंध भापकों मानमा मिथ्यादृष्टि है। यहां कोऊ कहै-हमको तो बंध मुक्तिका विकल्प करना नाही, जाते शास्त्रविणे ऐसा कह्या है
“जो बंधउ मुक्कउ मुणइ, सो बंधई ण भंति ।" | याका अर्थ-जो जीव बंध्या पर मुक्त भया माने है, सो निःसन्देह बंधे है । ताकों क
। जे जीव केवल पर्यायदृष्टि होय, बंधमुक्त अवस्थाहीकों माने हैं, द्रव्य खभावका ग्रहण | नाहीं करै हैं, तिनकों ऐसे उपदेश दिया है, जो द्रव्यखभावकों न जानता जीव बंध्या मुक्त
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