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मो.मा. प्रकाश
कि आगें कहिए है, तिस प्रकार अपने परिणामनिकों भी सुधारे हैं । मिश्रपनो पाईये है। ॥ बहुरि केई धर्मबुद्धिकरि धर्म साधे हैं, परन्तु निश्चयधर्मकों न जाने हैं। तातै अभृतार्थ
धर्मों साधै हैं । तहां व्यवहार सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रकों मोक्षमार्ग जानि तिनिका साधन करै हैं । तहां शास्त्रवि देव गुरु धर्मकी प्रतीति लिए सम्यक्त्व होना कह्या है। ऐसी आज्ञा मानि अरहंत देव निग्रंथ गुरु जैनशास्त्र विना औरनिकों नमस्कारादि करनेका त्याग | किया है । परन्तु तिनका गुण अवगुणकी परीक्षा नाहीं करें। हे । अथवा परीक्षा भी करें, तो तत्त्वज्ञानटूर्वक सांची परीक्षा नाहीं करें हैं । बाह्यलक्षणनिकरि परीक्षा करें हैं। ऐसे प्रतीतिकरि ।
सुदेव गुरु शास्त्रनिकी भक्ति विष प्रवत्र्ते हैं । तहां अरहंत देव है, सो इंद्रादिकरि पूज्य है, अनेक । अतिशयसहित है, क्षुधादिदोषरहित है, शरीरकी सुन्दरताको धरै है, स्त्रीसंगमादि रहित है,
दिव्यध्वनिकरि उपदेश दे है, केवलज्ञानकरि लोकालोक जाने है, काम क्रोधादिक नष्ट किए | है इत्यादि विशेषण कहै है । तहां इनविषै केई विशेषण पुद्गलके आश्रय हैं, केई जीवके
आश्रय हैं । तिनकों भिन्न भिन्न नाही पहिचान है। जैसें असमाननातीय मनुष्यादि पर्यायनिवि भिन्न न नानि मिथ्यादृष्टि धरै है, तैसें यह असमान जातीय अरहंतपर्यायविष जीव पुद्गलके विशेषणनिको भिन्न न जानि मिथ्यादृष्टिता धरै है । बहुरि जो बाह्य विशेषण है. तिनकों तो जानि तिनकरि अरहंतदेवको महन्तपनो विशेष माने है । अर जे जीवके विशेषण । ३३६
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