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मो.मा. प्रकाश
|| करै है। परिणामिनकी पहिचान नाहीं । बहुरि प्रतादिक धारे है, तहां बाह्यक्रिया ऊपरि दृष्टि
है, सो भी कोई सांची क्रिया करें है, कोई झूठी करे है । अर अंतरङ्ग रानादिक भाव पाइये है, तिनिका विचार ही नाहीं। वा बाह्य भी रागादि पोषनेका साधन करै है। बहुरि पूजा प्रभावना आदि कार्य करे है । तहां जैसे लोकबिषे बड़ाई होय वा विषय-कषाय पोषे जाय, तैसें कार्य करे है । बहुरि वहुत हिंसादिक निपजावै है। सो ए कार्य तौ अपना वा अन्य | जीवनिका परिणाम सुधारनेके भर्थि कहे हैं। बहुरि तहां किंचित् हिंसादिक भी निपजै है, तौ थोरा अपराध होय गुण बहुत होय, सो कार्य करना कह्या है । सो परिणामनिकी पहचानि । नाहीं । अर यहां अपराध केता लागे है, गुण केता हो है, सो नफा टोटाका ज्ञान नाही, वा विधि अविधिका ज्ञान नाहीं । बहुरि शास्त्राभ्यास करै है । तहां पद्धतिरूप प्रवते है। जो वाँचे।
है, तो औरनिकों सुनाय दे है । जो पढ़े है, तो आप पढ़ि जाय है। सुनै है, तो कहै है सो । सुनि ले है । नो शास्त्राभ्यासका प्रयोजन है, ताकौं आप नाही अवधारे है। इत्यादि धर्म
कार्यनिका धर्मकों नाहीं पहिचाने । केई तो कुलविषै जैसे बड़े प्रवर्ते, तैसें हमकों भी करना, अथवा और करें हैं, तेसैं हमकों भी करना, वा ऐसे किए हमारा लोभादिककी सिद्धि होगी। इत्यादि विचार लिए अभूतार्थ धर्मों साधे हैं। बहुरि केई जीव ऐसे हैं, जिनके किछु तौ कुलादिरूप बुद्धि है, किछु धर्मबुद्धि भी है, तातै पूर्वेक्तप्रकार भी धर्मका साधन करें हैं पर
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