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मो.मा. प्रकाश
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वा भला निमित्तते कर्मका स्थिति अनुभाग घटि. जाय, तो सम्यक्तादिककी भी प्राप्ति होय जाय । बहुरि अराभोपयोगते नरक निगोदादि होय, या बुरी वासनाते वा बुरा निमित्तते कर्मका. स्थिति अनुभाग बधि जाय, तो सम्यक्तादिक महा दुर्लभ होय जाय । बहुरि शुभोपयोगहीत. कषाय मन्द हो है। अशुभोपयोग तीव्र हो है। सो मंदकषायका कारण छोरि तीनकषायका. कारण तो, ऐसा है, जैसे कड़वी वस्तु न खानी अर विष खोना । सो यह अज्ञानता है । बहुरि वह.कहै. है-शास्त्रविषे शुभ अशुभकों समान कह्या है, ताते हमको तौ। | विशेष जानना युक्त नाहीं। ताका समाधान
जे जीव शुभोपयोगकों मोचका कारण मानि उपादेय माने हैं, शुद्धोपयोगकों नाहीं पहिचाने हैं, तिनकों शुभ अशुभ दोऊनिकों अशुद्धताकी अपेक्षा वा बंधकारणकी अपेक्षा स-|| मान दिखाईये है । बहुरि शुभ अशुभनिको परस्पर विचार कीजिए, तो शुभभावनिकै विषै | कषायमन्द हो है, तातें बंध हीन हो है । अशुभभावनिवि कषायतीव हो है, तातें बंध बहुत |
हो है । ऐसें विचार किए अशुभकी अपेक्षा सिद्धांतविष शुभको भला भी कहिए । जैसे रोग | तो थोरा वा बहुत बुरा ही है। परंतु बहुत रोगकी अपेक्षा थोरा रोगकू भला भी कहिए । तात।
शुभोपयोग नाही होय, तब अशुभते छुटि शुभविषे प्रवर्तना युक्त है। शुभकों छोरि प्रशुभविषे ।। ३१२ प्रवर्तनाः युक्त नाहीं । बहुरि, वह कहै है जो कामादिक वा क्षुधादिक मिटावनेकौं अशुभरूप
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