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मो.मा. प्रकाश
गने योग्य है । तहां जिन आगमविष निश्चय व्यवहाररूप वर्णन है । तिनविषे यथार्थका नाम | निश्चय है । उपचारका नाम व्यवहार है सो इनके स्वरूपकों न जानते अन्यथा प्रवत्त हैं, सोई कहिए है केई जीव निश्चयकों न जानते निश्चयाभासके श्रद्धानी होय आपकों मोक्षमार्गी माने हैं। अपने आत्माकों सिद्धसमान अनुभवै हैं। सो आप प्रत्यक्षसंसारी हैं । भ्रमकरि आ-18 |पों सिद्ध मानें सोई मिथ्यादृष्टी हैं । शास्त्रनिविषै जो सिद्ध समान आत्माकों कह्या है, सो द्रव्यदृष्टिकरि कह्या है, पर्याय अपेक्षा समान नाहीं हैं। जैसे राजा अर रंक मनुष्यपनेकी अपेक्षा समान हैं, राजापना रंकपनाकी अपेक्षा तो समान नाहीं। तैसें सिद्ध अर संसारी जीवत्त्वपनेकी
अपेक्षा समान हैं, सिद्ध पना संसारीपनाकी अपेक्षा तो समान नाहीं । यह जैसे सिद्ध शुद्ध हैं, । तैसे ही आपकौं शुद्ध माने । सो शुद्ध अशुद्ध अवस्था पर्याय है । इस पर्यायअपेक्षा समानता । • मानिए, सो यह मिथ्यादृष्टी है। बहुरि आपकै केवलज्ञानादिकका सद्भाव माने, सो आपकै तौ ||
क्षयोपशमरूप मतिश्रुतादि ज्ञानका सद्भाव है । क्षायिकभाव तौ कर्मका क्षय भए हो है । यह भ्रमतें कर्मका क्षय भए बिना ही क्षायिकभाव माने । सो यह मिथ्यादृष्टी है। शास्त्रनिविषै । सर्व जीवनिका केवलज्ञानस्वभाव कह्या है, सो शक्तिअपेक्षा कह्या है। सर्वजीवनिविष केवलज्ञानादिरूप होनेकी शक्ति है। वर्तमान व्यक्तता तौ व्यक्त भए ही कही। कोऊ ऐसा मान है, आत्माके प्रदेशनिविर्षे तो केवलज्ञान ही है, ऊपरि आवरणते प्रगट न हो है । सो यह भ्रम है।।
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