________________
मो.मा
जो केवलज्ञान होय, तो वजपटलादि भाड़े होते भी वस्तुकों जाने । कर्मको आड़े आए कैसे । अटकै । तातें कर्मके निमित्तते केवलज्ञानका अभाव ही है । जो याका सर्वदा सद्भाव रहै है,
तो याकों पारिणामिक भाव कहते, सो यह तौ क्षायिकभाव है। सर्वभेद जामें गर्भित ऐसा ||
चैतन्यभाव सो पारिणामिक भाव है । याकी अनेक अवस्था मतिज्ञानादिरूप वा केवलज्ञानादि || II रूप हैं, सो ए पारिणामिकभाव नाहीं । तातै केवलज्ञानका सर्वदा सद्भाव न मानना। बहुरि |
जो शास्त्रनिविर्षे सूर्यका दृष्टांत दिया है, ताका इतना ही भाव लेना, जैसें मेघपटल होते सूर्य | प्रकाश प्रगट न हो है, तैसें कर्मउदय होते केवलज्ञान न हो है । बहुरि ऐसा भाव न लेना, | जैसें सूर्यविर्षे प्रकाश रहै है, तैसें आत्माविषै केवलज्ञान रहै है । जाते दृष्टान्त सर्व प्रकार | मिले नाहीं । जैसे पुद्गलविणे वर्णगुण है, ताकी हरित पीतादि अवस्था हैं। सो वर्तमानविषै|
कोई अवस्था होते अन्य अवस्थाका अभाव ही है । तैसें आत्माविषे चैतन्य गुण है, ताकी | । मतिज्ञानादिरूप अवस्था हैं । सो वर्तमान कोई अवस्था होते अन्य अवस्था का अभाव ही | है। बहुरि कोऊ कहै कि, आवरण नाम तो वस्तुकौं आच्छादनेका है, केवलज्ञानका सद्भाव ।। नाहीं है, तो केवलज्ञानावरण काहेकौं कहो हो । ताका उत्तर| यहां शक्ति है ताकौं व्यक्त न होने दे, ताकी अपेक्षा आवरण कह्या है। जैसे देशचारित्र। का अभाव होते शक्ति घातनेकी अपेक्षा अप्रत्याख्यानावरण कह्या, तैसें जानना। बहुरि ऐसें ||२९५
Yeo156000000000202000000000000000000000000000000000199081810000oradoopla0016