________________
मो.मा
प्रकाश
POTOOTRICHOOTOOGogaroodmoonames
कार्यस्वादकृतं न कर्म न च तज्जीवप्रकृत्योर्द्वयोरज्ञायाः प्रकृतेः स्वकार्यनुभवाभावान्न चेयं कृतिः । नेकस्याः प्रकृतेरचित्वलसनाजीवस्य कर्त्ता ततो
जीवस्यैव च कर्म तच्चिदनुगं ज्ञाता न वै पुद्गलः ॥ १॥ __यह रागादिरूप भावकर्म है, सो काहूकरि किया नाहीं है । ताते यह कार्यभूत है। बपरि जीव अर कर्मप्रकृति इन दोऊनिका भी कर्त्तव्य नाहीं । जातें ऐसें होय, तो अचेतनकर्म |
प्रकृतिकै भी तिस भावकर्मका फल सुख दुख ताकों भोगना होय, सो असंभव है । वहुरि ए। कली कर्मप्रकृतिका भी यह कर्तव्य नाहीं । जाते वाकै अचेतनपनो प्रगटहै । तातै इस रागादिकका जीव ही कर्ता है । अर सो गगादिक जीवहीका कर्म है । जातै भावकर्म तौ चेतन
का अनुसारी है, चेतना बिना न होय । अर पुद्गल ज्ञाता है नाहीं । ऐसें रागादिकभाव जीव । IN के अस्तित्वविर्षे हैं। जो रागादिक भावनिका निमित्त कर्महीको मानि आपकों रागादिकका
अकर्ता माने हैं, सो कर्त्ता तो आप अर आपकौं निरुद्यमी होय प्रमादी रहना, तातें कर्महीका || दोष ठहरावै हैं । सो यह दुखदायक भ्रम है । सोई समयसारका कलशाविषै कह्या है
रागजन्मनि निमित्ततां परद्रव्यमेव कलयन्ति ये तु ते । उत्तरन्ति न हि मोहवाहिनों शुद्भवोधविधुरान्धबुद्धयः॥
Poorp6004960000000000000cMoojpfootacoodacootpagoodccroorgotaojpoor080018000000000000000000
EGloori.c0000000
moolaN0043/5ook:001000
२६