________________
काश
kahacrookaar-oKORE0%20ootpcMOOGeojpcroofacHoomdoogacroofactootagoodDHOO-HAGMOORDEMORROMoroacroofacRONDS
| परिग्रहके धारी, यह कैसे बनें। बहुरि कोई कहै-अब श्रावक भी तो जैसे संभवें, तैसे नाहीं । ताते' जैसे श्रावक तैसें मुनि । तोका उत्तर
श्रावकसंज्ञा तो शास्त्रविषै सर्वगृहस्थ जैनीकों है । श्रेणिक भी असंयमी था, ताको उत्तर| पुराणविष श्रावकोप्तम कह्या। बारह सभाविषेश्रावक कहे, तहां सर्व व्रतधारी न थे। जो सर्व
व्रतधारी होते, तो असंवत मनुष्यनिकी जुदी संख्या कहते, सो कही नाहीं। तातै गृहस्थ जैनी || ॥ श्रावकनाम पावे हैं । अर मुनिसंज्ञा तो निग्रंथ विना कहीं कही नाहीं । बहुरि श्रावकके तो आठ
मूलगुण कहे हैं । सो मद्य मांस मधु पंचउदंबरादि फलनिका भक्षण श्रावकनिक है नाहीं, तात।। काहू प्रकारकरि श्रावकपना तो संभवै भी है । अर मुनिके अट्ठाईस मूलगुण हैं, सो भेषीनिकै | | दीसते ही नाहीं । तातें मुनिपनी काहप्रकारकरि संभवे नाहीं । बहरि गृहस्थअवस्थाविषे तो पूर्वे ।। | जंबूकुमारादिक बहुत हिंसादिककार्य किए सुनिए है। मुनि होयकरि तौ काहूने हिंसादिक | कार्य किए नाहीं, परिग्रह राखे नाही, तातै ऐसी युक्ति कारिजकारी नाहीं । बहुरि देखो, आ| दिनाथजीकी साथ च्यारि हजार राजा दीक्षा लेय बहुरि भ्रष्ट भए, तब देव उनकों कहते भए, || | जिनलिंगी होय अन्यथा प्रवत्तॊगे तो हम दंड देंगे। जिनलिंग छोरि तुम्हारी इच्छा होय, सो । ही करो। तातें जिनलिंगी कहाय अन्यथा प्रवत्ते, तो दंड योग्य है । बंदनादियोग्य कैसे होय ।
अब बहुत कहा कहिए, जे जिनमतविष कुभेष धारें हैं, ते महापाप उपजावें हैं। अन्य जीव उ
Tre-pokoolaakootakooRROREGOROORPHOORCMOOHORO00300-008001860048fnotato-0-180000000001033000