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प्रकाश
ते ऐसी बुद्धि भई, तब वह लोकविषै तिनिके सेवने की प्रवृत्ति करावनेके अर्थि कोई चम|त्कार देखि तिस कार्यविर्षे लग जाय है । जैसे जिन प्रतिमादिकका भी अतिशय होता सुनिए | वा देखिए है । सो जिनकृत नाहीं जैनी व्यंतरादिकृत हो है । तैसें कुदेवनिका कोई चमत्कार | होय, सो उनके अनुचरि व्यंतरादिकनिकरि किया हो है। बहुरि अन्यमतविषै भक्तनिकी स-1
हाय परमेश्वर करी वा प्रत्यक्ष दर्शन दिए इत्यादि कहे हैं। तहांकोई तो कल्पित बातें कहै हैं।। । कोई उनके अनुचर व्यंतरादिककरि किए कार्यनिकों परमेश्वरके किए कहै हैं । जो परमेश्वरके ।
किए होंय, तो परमेश्वर तो त्रिकालज्ञ है । सर्व प्रकार समर्थ है। भक्तों दुःख कायेकों होने || है दे। बहुरि अब हू भी देखिए है । म्लेच्छ आय भक्तनकों उपद्रव करै हैं, धर्मविध्वंस करै हैं, | मूर्तिको विघ्न करे हैं, सो परमेश्वरकों ऐसे कार्यका ज्ञान न होय, तो सर्वज्ञपनों रहे नाहीं। जाने पीछे सहाय न करे, तो भक्तवत्सलता गई वा सामर्थ्यहीन भया। बहुरि साक्षीभूत रहै | है, तो आगे भक्तनकी सहाय करी कहिए है सो झूठ है । उनकी तो एकसी वृत्ति है । बहुरि ।
जो कहोगे वैसी भक्ति नाहीं है । तो म्लेच्छनितें तो भले हैं, वा मूर्तिआदि तो उनहींकी। । स्थापन थी, तिनका विघ्न तो न होने देना था । बहुरि म्लेच्छपापीनिका उदय हो है, सो पर| मेश्वरका किया है कि नाहीं । जो परमेश्वरका किया है, तो निंदकनिकों सुखी करे, भक्तनकों दुःखी करे, तहां भक्तवत्सलपना कैसे रहा। अर परमेश्वरका किया न हो है, तो परमेश्वर ||२५८
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