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मो.मा. प्रकाश कार्य करना ठहरया । बहुरि युक्तिकरि भी ऐसे ही संभव है। कोऊ त्यागी होय, मंदिरादिक
M नाहीं करावें है, वा सामायिकादि निरवद्य कार्यनिविर्षे प्रवर्ते है। ताों तो छोरि प्रतिमादि || || करावना पूजनादि करना उचित नाहीं। परन्तु कोई अपने रहनेकै वास्तै मंदिर आदि बनावै,।
तिसते तो चैत्यालयादि करावनेवाला हीन नाहीं। हिंसा तो भई, परंतु वाकै तौ लोभ पापानुरागकी वृद्धि भई, याकै लोभ छुट्या, धर्मानुराग भया। बहुरि कोई व्यापारादि कार्य करें, तिसते पूजनादि कार्य करना हीन नाहीं। वहां तो हिंसादि बहुत हो है, लोभादि बधै है, पापहीकी प्रवृत्ति है । यहां हिंसादिक भी किंचित् हो है, लोभादि घटै है, धर्मानुराग बधै है। ऐसे जे त्यागी न होय, अपने धनकों पापविर्षे खरचते होंय; तिनकों चैत्यालयादि करावना ।
अर निरवद्य सामायिकादि कार्यनिविणे उपयोगकों नाहीं लगाय सके, तिनकों पूजनादि करना | निषेध नाहीं । बहुरि तुम कहोगे, निरवद्य सामायिक कार्यही क्यों न करे, धर्मविर्षे काल गमावना तहां ऐसे कार्य काहेकौं करै । ताका उत्तर,
जो शरीरकरि पाप छोरें ही निरवद्यपना होय, तो ऐसे ही करें। सो तो है नाहीं । परिणामनिते' पाप छूटें निरवद्यपना हो है । सो विना अवलम्बन सामायिकादिविर्षे जाका परिणाम लागे नाहीं, सो पूजनादिकरि तहां उपयोग लगावें है। तहां नाना प्रकार आलम्बनकरि उपयोग लगि जाय है । जो तहां उपयोगकौं न लगाये, तो पापकार्यनिविष उपयोग भटकै तब बुरा होय।। २५०
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